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leadership क्या है तथा इसके प्रकार क्या है?

इस पोस्ट में हम leadership (नेतृत्व) के बारें में विस्तार से पढेंगे.

  • 1 what is Leadership in hindi (नेतृत्व का अर्थ एवम् परिभाषा)
  • 2 types of leadership in hindi नेतृत्व के प्रकार
  • 3 नेतृत्व की शैलियां (styles of leadership in hindi)

what is Leadership in hindi (नेतृत्व का अर्थ एवम् परिभाषा)

कोई सामाजिक समूह कितना भी छोटा बड़ा क्यों न हो, उसका संगठन कुछ उद्देश्यों को सामने रखकर किया जाता है. इन उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए संगठन को एक विशेष प्रकार से कार्य करना होता है. किसी संगठन को विशेष प्रकार से कार्य करने की ओर ले जाना, उसके कार्यों को सही दिशा देने और संगठन पर नियंत्रण रखने वाले व्यक्ति को नेता (leader) और संगठन में उसकी भूमिका (कार्य को पूरा करने की प्रक्रिया) को नेतृत्व (leadership) कहते है.

भिन्न भिन्न विद्वानों ने इसे भिन्न भिन्न रूप से परिभाषित किया है.

  • कुंटज और ओ डोनेल की परिभाषा

“नेतृत्व किसी उद्देश्य की प्राप्ति हेतु, संदेश द्वारा व्यक्तियों को प्रभावित करने की योग्यता है,” (leadership is the ability to exert inter-personal influence by means of communication towards the achievement of the goal.)

  • काटज और काहं की परिभाषा

नेतृत्व एक प्रभाव है, जिसमें जो व्यक्ति नेता के पद पर विराजमान होता है वह अन्य व्यक्तियों को प्रभावित करता है.” (leadership is a influence in which the person who occupies the position of leader, influences the other individuals.)

  • लापिअर और फार्नसवर्थ ने स्पष्ट किया है कि नेतृत्व में दो पक्ष होते है- एक नेता जो नेतृत्व करता है और दूसरा समूह के सदस्य जो नेतृत्व स्वीकार करते है. इनमें समूह के सदस्य नेता के व्यवहार से प्रभावित होते है और नेता समूह के सदस्यों से प्रभावित होता है. परन्तु समूह के सदस्य नेता के व्यवहार से बहुत अधिक प्रभावित होते है जबकि नेता समूह के सदस्यों से कम प्रभावित होता है. उन्होंने इसी आधार पर leadership की परिभाषा दी है:-

“नेतृत्व वह व्यवहार है जो दूसरे व्यक्तियों के व्यवहार को उससे कही अधिक प्रभावित करता है जितना कि उनका व्यवहार नेता को प्रभावित करता है.” (leadership is a behavior that affects the behavior of other people more than their behavior affect that of the leader.)

यदि आप ध्यान से सोचें तो आपको पता चलेगा कि-

“ नेतृत्व किसी समूह में निरंतर चलने वाली वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा समूह का नेता समूह का मार्ग-दर्शन करता है. समूह के सदस्यों को उद्देश्य या उद्देश्यों की प्राप्ति की ओर अग्रसर करता है और साथ ही समूह को बांधें रखता है और उस पर नियन्त्रण रखता है.”

>> अच्छे नेता की विशेषतायें क्या है?

types of leadership in hindi नेतृत्व के प्रकार

नेतृत्व के अनेक प्रकार होते है मेरी पार्कर फोलेट (M.P Follet)  के नेतृत्व को तीन भागो में विभाजित किया है –

1> पद पर आधारित नेतृत्व :- जब किसी किसी समूह में किसी व्यक्ति को समूह के सदस्यों से कार्य लेने का उतरदायित्व सौंपा जाता है और वह समूह सदस्यों को कार्य करने की ओर प्रवृत करता है , उनके कार्यों को सही दिशा देता है और उनके कार्यों से सम्पादन सही ढंग से करता है तो इसे नेतृत्व को पद आधारित नेतृत्व कहते है इस नेतृत्व में पद पर आसीन व्यक्ति नेता होता है और वह अपने अधीन कार्यरत व्यक्तियों को आदेश देता है ,उनका निर्देशन करता है और साथ ही उन पर नियन्त्रण रखता है!

2> व्यक्तित्व पर आधारित नेतृत्व :- जब किसी समूह में कोई व्यक्ति अपने व्यक्तित्व और कार्यों के आधार पर नेतृत्व करता है और वह समूह के सदस्यों को उदेश्यों की प्राप्ति के लिये क्रियाशील करता है , उनका मार्गदर्शन करता है, तो ऐसे नेतृत्व को व्यक्तिगत आधारित नेतृत्व कहते है इस प्रकार के नेतृत्व  में नेता समूह के सदस्यों को उदेश्यों की प्राप्ति के क्रियाशील करता है और उनका मार्गदर्शन करता है इस नेतृत्व में सदस्य अपनी इच्छा से कार्य करते है और लगन के साथ करते हैं!

3> कार्य एवं योग्यता पर आधारित नेतृत्व :- जब कोई व्यक्ति किसी क्षेत्र विशेष में विशिष्ट ज्ञान होने के आधार पर उस क्षेत्र विशेष में कार्यरत व्यक्तियों का दिशा निर्देशन करता है ,तो इसे ज्ञान एवं कार्य के आधार पर आधारित नेतृत्व कहते है

इस प्रकार के नेतृत्व में क्षेत्र विशेष ज्ञान के साथ चिन्तन एवं तर्क का बड़ा महत्व होता है इसमे नेता और समूह के सदस्यों के बीच सहयोगपूर्ण सम्बन्ध होते है

इसे भी पढ़ें:- entrepreneur in hindi उद्यमी क्या है?

नेतृत्व की शैलियां (styles of leadership in hindi)

किसी समूह में उदेश्य की प्राप्ति के लिए नेता किसी रूप में कार्य करता है और समूह के सदस्य किस रूप में कार्य करते है, कार्य करने के इन तरीकों को नेतृत्व की शैली कहते है, नेतृत्व की अनेक शैलियाँ है –

( white lippitt and Livin ) ने समूह में नेता के निर्णय लेने और कार्य करने के आधार पर नेतृत्व की शैलियों को तीन भागों में विभाजित किया है-

  • सत्ताधारी नेतृत्व ( authoritarian leadership)  :-  इस शैली में समूह के नेता को निर्णय लेने और निर्णय के अनुसार कार्य के संचालन करने का पूर्ण अधिकार होता है वह स्वयं निर्णय लेता है और अपने इच्छानुसार कार्य का संचालन करता है इस प्रकार इसमें अधिकारों का केन्द्रीकरण (centralization) होता है यह नेतृत्व कार्य उन्मुखी (task oriented) होता है इस में उदेश्य की प्राप्ति किस प्रकार की जा सकती है ,इस पर अधिक ध्यान दिया जाता है इसमें समूह के सभी सदस्य नेता के आदेशों के अनुसार कार्य करते है.

इस शैली की सबसे बड़ी विशेषता यह है की इसमें समूह में व्यवस्था एवं अनुशासन रहता है , समूह के सभी सदस्य अपना अपना कार्य सही ढंग से करते है और समूह के उदेश्यों की प्राप्ति करते है!

दूसरी ओर इसकी सबसे बड़ी कमी यह है की यदि समूह में नेता का निर्णय गलत हुआ तो उदेश्य की प्राप्ति के स्थान पर असफलता ही प्राप्त होता है ,

इसकी दूसरी कमी यह है की इसमें समूह के सदस्य अधीनता का अनुभव करते है और उनका मनोबल गिर जाता है

तीसरी कमी यह है की इसमें नेता की अनुपस्थिति में शिथिलता आ जाती है और नेता की मृत्यु के बाद तो समूह  बिखर जाता है !

  • लोकतन्त्रीय शैली (democratic style) :- इस शैली में नेता समूह के राय से निर्णय लेता है समूह के सदस्यों की राय से योजना बनता है और समूह के सदस्यों के सहयोग से उदेश्यों की प्राप्ति की जाती है यह नेतृत्व सदस्य उन्मुखी (members oriented) होता है ,इस शैली में अधिकारों का विकेंद्रीकरण (decentralization) होता है, बड़े आकार के समूह के साथ नेता के साथ उपनेता होते है और वरिष्ठ कार्यकर्ता होते है जिन सब के सहयोग से समूह के सदस्य आगे बढ़ते है

इस शैली की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि समूह के सभी सदस्य किसी भी प्रकार के दबाव से मुक्त होते है उनका मनोबल ऊँचा होता है, वह अपने उतरदायित्व को समझते है, स्वेच्छा से कार्य करते है, और उदेश्य की प्राप्ति करते है

इस शैली में कुछ कमियां भी है बड़े समूह में ना तो सभी सदस्यों की राय ली जाती है और ना सभी की राय मानी जा सकती है राय की भिन्नता के कारण सभी सदस्य एकजुट नही हो पते और कभी कभी  उदेश्य की प्राप्ति में बाधा पड़ती है

  • अनहस्तक्षेपी शैली ( laissez-fair style) :- नेतृत्व की इस शैली में नेता समूह के सदस्यों के कार्यों में हस्तक्षेप नही करता, समूह के सभी सदस्य उदेश्यों की प्राप्ति के लिए समूह की परिपाटी के अनुसार के कार्य करते है उन पर नेता का न्यूनतम नियन्त्रण होता है.

प्रबुद्ध व्यक्तियों के छोटे समूह में यह शैली कारगर होती है प्रथमत: इसलिए कि प्रबुद्ध व्यक्तियों के आत्मसम्मान की रक्षा होती है दूसरा इसलिए कि उन पर विश्वास किया जाता है उनकी निष्ठां पर विश्वास किया जाता है और उनकी योग्यता पर विश्वास किया जाता है परिणामत: वह अपने उतरदायित्व का निर्वाह ईमानदारी से करते है और पूरी लगन से करते है

परन्तु यह शैली सामान्य व्यक्तियों के छोटे बड़े किसी भी समूह में कारगर नही होती. नेता का हस्तक्षेप ना होने अथवा न्यूनतम हस्तक्षेप होने से समूह में ना व्यवस्था होती है और ना ही अनुशासन और कार्य अनियंत्रित और अनिश्चित रूप से चलता है परिणामस्वरूप उदेश्य की प्राप्ति नही हो पाती !

नेतृत्व (leadership) की तीन शैलियों सताधारी ,लोकतन्त्रीय,एवं अनहस्तक्षेपी के अपने गुण दोष है किस समूह में नेतृत्वता की किस शैली को अपनाया जाये यह समूह के स्वरूप, उदेश्यों और सदस्यों तीनों पर निर्भर करता है इसके साथ साथ इस बात पर भी निर्भर करता है की नेता किन परस्थितियों में किस शैली को अपनाता है और किस रूप में अपनाता है.

सामान्यत: रक्षा (defence) के क्षेत्र में अधिनायकवादी  शैली अधिक उपयुक्त मानी जाती है और परिवार एवं समुदाय के क्षेत्र में लोकतन्त्रीय शैली अधिक उपयुक्त मानी जाती है. चूँकि अनहस्तक्षेप शैली अपने में उपयुक्त शैली नही है परन्तु फिर भी प्रबुद्ध व्यक्तियों के समूह में यह अधिक कारगर होती है!

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Chief Executive: Meaning and Functions | Hindi | Public Administration

essay on chief in hindi

ADVERTISEMENTS:

Read this article in Hindi to learn about:- 1. Meaning and Necessity of Chief Executive 2. Various Forms of Chief Executive 3. Functions and Powers. 

मुख्य कार्यपालिका का अर्थ एवं आवश्यकता (Meaning and Necessity of Chief Executive):

किसी भी संगठन के शीर्ष पर उस संगठन के प्रमुख का पद होता है जो संगठन के सभी अधिकारियों व कर्मचारियों तथा उनकी कार्यविधियों पर नियन्त्रण रखता है । विभव संगठनों में प्रमुख को विभिन्न नामों से जाना जाता है व्यावसायिक संगठन में शीर्षस्थ प्रमुख को ‘महाप्रबन्धक’ अथवा ‘सामान्य प्रबन्धक’ (General Manager) के नाम से सम्बोधित किया जाता है ।

संगठन के पर्यवेक्षण निर्देशन व निरीक्षण का उत्तरदायित्व उसी पर होता है । इसी प्रकार राज्य के प्रशासकीय संगठन का प्रमुख ‘मुख्य कार्यपालिका’ (Chief Executive) कहलाता है प्रशासन के प्रत्येक क्षेत्र का नेतृत्व वही करता है । विश्व के विभिन्न देशों में कार्यपालिका का स्वरूप वहाँ की संवैधानिक व्यवस्था के अनुरूप भिन्न-भिन्न होता है ।

मुख्य कार्यपालिका से अभिप्राय उस व्यक्ति विशेष या व्यक्ति समूह से है जो किसी भी संगठन की प्रशासनिक व्यवस्था का नेतृत्व करता है तथा संगठन के संचालन हेतु अन्तिम रूप से उत्तरदायी होता है ।

वह संगठन की प्रशासनिक व्यवस्था के शीर्ष पर होता है । डिमॉक (Dimock) के अनुसार- ”मुख्य कार्यपालक संगठन में कठिनाइयों का अन्त करने वाला पर्यवेक्षक एवं आगामी कार्यक्रम का प्रवर्तक होता है ।” मुख्य कार्यपालक की आवश्यकता एवं महत्व पर प्रकाश डालते हुए प्रो. बीड लिखते हैं- ”उच्च स्तरीय नीति के विकास में नेतृत्व प्रशासकीय प्रबन्धक के साथ इतना घुल मिल गया है कि अधिकांस सरकारों में तथा प्राय: सभी व्यक्तिगत संगठनों में दोनों कार्यों को जानबूझकर एक ही व्यक्ति को सौंप दिया जाता है ।”

इसी तथ्य के आधार पर मुख्य कार्यपालक की स्थिति अन्य अरिष्ट अधिकारियों की अपेक्षा उल्लेखनीय बन गई है व्यवहार में यह अनुभव किया जाता रहा है कि जब भी प्रशासनिक एकता कमजोर हुई है तब-तब प्रशासन के लिये खतरा उत्पन्न हो गया है । इससे मुख्य कार्यपालिका के पद को और अधिक महत्व दिया जाने लगा है । प्रशासन में एकता, सामंजस्य, सहयोग व समरूपता के लिये यह आवश्यक है कि मुख्य कार्यपालिका के पद को शक्ति-सम्पन्न बनाया जाये ।

मुख्य कार्यपालिका के पद की आवश्यकता निम्नलिखित तथ्यों में निहित है:

1. प्रशासनिक अनियमितताओं, विलम्ब एवं भ्रष्टाचार को दूर करने हेतु ।

2. प्रशासन में कुशलता एवं मितव्ययिता लाने हेतु ।

3. जनता के अधिकाधिक कल्याण एवं उत्तम सेवाएँ प्रदान करने हेतु ।

4. देश की सुरक्षा व्यवस्था को मजबूत बनाने हेतु ।

5. जातीय, साम्प्रदायिक एवं प्रादेशिक आदि चुनौतियों का सामना करने हेतु ।

मुख्य कार्यपालिका के विभिन्न प्रकार (Various Forms of Chief Executive):

किसी भी देश की मुख्य कार्यपालिका का स्वरूप वहाँ की संवैधानिक व्यवस्था के अनुसार तय किया जाता है जैसा कि अध्याय के प्रारम्भ में वर्णित किया गया है कि मुख्य कार्यपालिका को सामान्यतया निम्नलिखित तीन समूहों में वर्गीकृत किया जाता रहा है:

1. संसदात्मक एवं अध्यक्षात्मक कार्यपालिका,

2. नाममात्र की एवं वास्तविक कार्यपालिका,

3. एकल एवं बहुल कार्यपालिका ।

1. संसदात्मक एवं अध्यक्षात्मक कार्यपालिका (Parliamentary and Presidential Executive):

संसदात्मक शासन-व्यवस्था में कार्यपालिका व्यवस्थापिका के प्रति उत्तरदायी होती है । इसमें कार्यपालिका शक्ति किसी एक व्यक्ति में निहित न होकर मन्त्रिमण्डल या कैबिनेट में निहित रहती है, अत: इसे ‘मन्त्रिमण्डलात्मक शासन’ भी कहते हैं । साथ ही कार्यपालिका व्यवस्थापिका के प्रति उत्तरदायी होती है, अत: इसे ‘उत्तरदायी शासन’ भी कहा जाता है ।

संसदात्मक शासन के सैद्धान्तिक एवं व्यावहारिक रूप में भनता के कुछ लक्षण दृष्टिगोचर होते हैं । व्यवहार में इस व्यवस्था में शासन का प्रधान ‘नाममात्र का प्रधान’ (Nominal Head) होता है जो कि राजा या राष्ट्रपति होता है । शासन का वास्तविक संचालन वास्तविक प्रधान मंत्रिपरिषद द्वारा किया जाता है ।

संसदात्मक कार्यपालिका की प्रमुख विशेषताएँ ( Chief Characteristics of Parliamentary Executive):

संसदात्मक शासन की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:

(i) नाममात्र की एवं वास्तविक कार्यपालिका (Nominal and Real Executive):

राज्य का प्रधान नाममात्र की कार्यपालिका होता है, जबकि वास्तविक कार्यपालिका मन्त्रिपरिषद् होती है । नाममात्र की कार्यपालिका के उदाहरण हैं- इंग्लैण्ड का सम्राट व भारत का राष्ट्रपति । सैद्धान्तिक दृष्टि से ये शक्ति-सम्पन्न होते हैं, किन्तु व्यवहार में इन शक्तियों का प्रयोग वास्तविक कार्यपालिका अर्थात मन्त्रिपरिषद् द्वारा किया जाता है ।

(ii) कार्यपालिका, व्यवस्थापिका के प्रति उत्तरदायी (Executive Responsible towards Legislative):

संसदात्मक शासन में व्यवस्थापिका एवं कार्यपालिका एक-दूसरे से घनिष्ठ रूप में सम्बन्धित होती है । निम्न सदन में बहुमत प्राप्त राजनीतिक दल का नेता प्रधानमन्त्री का पद ग्रहण करता है तथा राजनीतिक दल में से ही मन्त्रिपरिषद् का निर्माण करता है । वास्तविक कार्यपालिका अथवा मंत्रिपरिषद अपने कार्यों के लिए अन्तिम रूप से इसी लोकप्रिय सदन के प्रति उत्तरदायी होती है ।

(iii) अनिश्चित कार्यकाल (No Fixed Tenure):

संसदात्मक शासन में कार्यपालिका का कार्यकाल निश्चित नहीं होता है । यदि व्यवस्थापिका द्वारा कार्यपालिका के प्रति अविश्वास प्रकट किया जाता है, तो कार्यपालिका को अपने पद से त्यागपत्र देना पड़ता है ।

(iv) व्यक्तिगत उत्तरदायित्व (Personal Responsibility):

मन्त्रिमण्डल के सदस्य अपने-अपने विभागों के अध्यक्ष होते हैं । विभाग का कार्य-संचालन उन्हीं के नेतृत्व में सम्पन्न होता है । इस प्रकार विभाग के कार्यों के लिये वे व्यक्तिगत रूप से व्यवस्थापिका के प्रति उत्तरदायी होते हैं ।

(v) सामूहिक उत्तरदायित्व (Collective Responsibility):

मन्त्रिमण्डल के सदस्य सामूहिक रूप से भी व्यवस्थापिका के प्रति उत्तरदायी होते हैं । नीति सम्बन्धी प्रश्न पर व्यवस्थापिका (लोकसभा) में किसी एक मन्त्री की पराजय सारे मन्त्रिमण्डल की पराजय मानी जाती है । मन्त्रिमण्डल के सदस्य ‘एक साथ डूबते व तैरते हैं ।’

( vi) प्रधानमन्त्री का शासन (Rule of Prime Minister):

संसदीय शासन में प्रधानमन्त्री को वास्तविक नेता माना जाता है । वह निम्न सदन में बहुमत दल का नेता होता है । इंग्लैण्ड में लोक सदन (House of Commons) तथा भारत में लोकसभा (House of People) में बहुमत दल का नेता प्रधानमन्त्री के रूप में नियुक्त किया जाता है ।

अध्यक्षात्मक कार्यपालिका की प्रमुख विशेषताएँ ( Chief Characteristics of Presidential Executive):

अध्यक्षात्मक कार्यपालिका की प्रमुख विशेषताएँ अग्रलिखित हैं:

(a) इकहरी कार्यपालिका (Single Executive):

अध्यक्षात्मक शासन में नाममात्र की एवं वास्तविक कार्यपालिका में कोई अन्तर नहीं होता है । समस्त शक्तियाँ राष्ट्रपति में केन्द्रित होती हैं तथा वही वास्तविक कार्यपालिका होता है । वह राज्य भी करता है और शासन भी ।

(b) कार्यपालिका एवं व्यवस्थापिका का पृथक्करण (Separation of Executive and Legislature):

इसमें कार्यपालिका और व्यवस्थापिका में पृथक्करण होता है । यह मॉण्टेस्क्यू के ‘शक्ति-पृथक्करण सिद्धान्त’ पर आधारित है । कार्यपालिका के सदस्य न तो व्यवस्थापिका के सदस्य होते हैं और न ही उसके प्रति उत्तरदायी होते हैं । व्यवस्थापिका व कार्यपालिका एक दूसरे से स्वतन्त्र रहती हैं ।

(c) कार्यकाल की निश्चितता (Fixed Tenure):

अध्यक्षात्मक कार्यपालिका का कार्यकाल निश्चित होता है । कार्यपालिका प्रधान (राष्ट्रपति) का निर्वाचन एक निश्चित अवधि के लिये किया जाता है । व्यवस्थापिका के विश्वास-अविश्वास का उसके कार्यकाल पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है । कार्यपालिका प्रधान को एक निश्चित प्रक्रिया ‘महाभियोग’ के द्वारा ही पदच्युत किया जा सकता है ।

2. नाममात्र की एवं वास्तविक कार्यपालिका (Nominal and Real Executive):

नाममात्र की कार्यपालिका से तात्पर्य उस कार्यपालिका से है जिसे संविधान द्वारा सर्वोच्च प्रशासनिक शक्ति प्रदान की गयी हो किन्तु व्यवहार में जिसका प्रयोग किसी अन्य के द्वारा किया जाता हो । प्रशासन के समस्त कार्य उसी के नाम से संचालित किए जाते हैं जबकि उन कार्यों के सम्पादन में वास्तविक शक्ति का प्रयोग वास्तविक कार्यपालिका द्वारा किया जाता है ।

भारत व ब्रिटेन की शासन व्यवस्थाओं में इसका अच्छा उदाहरण देखने को मिलता है । भारत में ‘राष्ट्रपति’ तथा ब्रिटेन में ‘सम्राट’ का पद नाममात्र की कार्यपालिका का है । वास्तविक शक्ति प्रधानमन्त्री व उसकी मन्त्रिपरिषद् के हाथों में रहती है ।

संक्षेप में, संसदीय शासन-व्यवस्था में नाममात्र की एवं वास्तविक कार्यपालिका का अस्तित्व देखने को मिलता है ।

संवैधानिक दृष्टि से राज्य प्रमुख समस्त शक्तियों का सोत है जो कि नाममात्र की कार्यपालिका कहलाता है, क्योंकि उसको प्रदत्त समस्त शक्तियों का वास्तव में उपयोग प्रधानमन्त्री व उसकी मन्त्रिपरिषद द्वारा किया जाता है । वही वास्तविक कार्यपालिका कहलाती है । अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली में वास्तविक कार्यपालिका शक्ति राष्ट्रपति में निहित होती है ।

3. एकल एवं बहुल कार्यपालिका (Single and Plural Executive):

एकल कार्यपालिका से तात्पर्य उस कार्यपालिका संगठन से है जिसमें कार्यपालिका सम्बन्धी समस्त शक्तियाँ एक ही व्यक्ति में निहित होती हैं, जबकि इसके विपरीत बहुल कार्यपालिका में कार्यपालिका की शक्तियाँ विभिन्न व्यक्तियों में बँटी होती हैं । वस्तुत: ये दोनों संसदात्मक एवं अध्यक्षात्मक कार्यपालिका के ही रूप हैं ।

एकल कार्यपालिका का आदर्श स्वरूप संयुक्त राज्य अमेरिका ब्राजील एवं दक्षिणी अमेरिका में देखने को मिलता है जबकि बहुल कार्यपालिका का सर्वोत्तम उदाहरण स्विट्‌जरलैण्ड की शासनव्यवस्था में देखा जा सकता है । वर्तमान में अमेरिका का राष्ट्रपति एकल कार्यपालिका का सर्वोत्तम उदाहरण है ।

इसके विपरीत स्विट्‌जरलैण्ड में कार्यपालिका सत्ता सात सदस्यों की एक संघीय परिषद् में निवास करती है ओर यह संघीय परिषद् सामूहिक रूप से राज्य की कार्यपालिका प्रधान के रूप में कार्य करती है । कतिपय विद्वानों के मतानुसार भारत व इंग्लैण्ड के संसदीय शासन भी एकल कार्यपालिका के उदाहरण हैं ।

मुख्य कार्यपालिका के कार्य एवं शक्तियाँ (Functions and Powers of the Chief Executive):

मुख्य कार्यपालिका को सामान्यतया दो प्रकार के कार्य सम्पादित करने पड़ते हैं :

1. राजनीतिक कार्य एवं

2. प्रशासनिक कार्य ।

1. राजनीतिक कार्य (Political Functions):

मुख्य कार्यपालिका के राजनीतिक कार्य निम्नलिखित हैं:

(i) मुख्य कार्यपालिका को व्यवस्थापिका एवं अपने राजनीतिक दल के साथ पूर्ण समन्वय एवं सहयोग की स्थिति बनाकर रखनी होती है । यह आवश्यक है, क्योंकि कार्यपालिका का अस्तित्व इन दोनों की स्वीकृति पर आवश्यक है । प्रशासन के सफल संचालन एवं वित्त की आवश्यकता की पूर्ति हेतु भी इन दोनों का विश्वास प्राप्त करना आवश्यक हो जाता है ।

(ii) निर्धारित योजनाओं की क्रियान्विति करना भी मुख्य कार्यपालिका का दायित्व है । लोक कल्याणकारी योजनाओं को क्रियान्वित करके ही जन-समर्थन की प्राप्ति की जा सकती है ।

(iii) मुख्य कार्यपालिका जन-इच्छाओं एवं जन-समस्याओं को जानने तथा विशाल जमनत तैयार करने की दिशा में भी प्रयासरत रहती है क्योंकि ‘जनमत’ ही आधुनिक लोकतन्त्र का प्रमुख आधार है ।

(iv) मुख्य कार्यपालिका आवश्यकता पड़ने पर व्यवस्थापिका एवं जनता का मार्ग-निर्देशन भी करती है ।

2. प्रशासनिक कार्य (Administrative Functions):

मुख्य कार्यपालिका के प्रशासनिक कार्यों के सम्बन्ध में विभिन्न मत प्रस्तुत किये जाते हैं ।

लूथर गुलिक के पोस्टकॉर्ब ( POSDCORB) शब्द के अनुसार कार्यपालिका के प्रशासनिक कार्य निम्नलिखित हैं:

(i) नियोजन,

(ii) संगठन,

(iii) कार्मिकों की व्यवस्था,

(iv) निर्देशन,

(v) समन्वय,

(vi) प्रतिवेदन,

(vii) बजट ।

प्रो. वीग ने मुख्य कार्यपालिका के कार्यों को दो वर्गों में विभक्त किया है:

(a) प्रशासनिक नियोजन व निर्देशन तथा

(b) समन्वय एवं प्रशासनिक प्रतिवेदन ।

एल. डी. ह्वाइट के अनुसार- मुख्य कार्यपालिका आठ प्रकार के कार्य करती है:

(i) अनुकूल वातावरण का निर्माण,

(ii) नीति-निर्माण,

(iii) निर्देश देना,

(iv) बजट बनाना,

(v) कार्मिकों का चयन,

(vi) निरीक्षण एवं नियन्त्रण,

(vii) पद-विमुक्ति एवं

(viii) जन-सम्पर्क ।

चेस्टर आई. बर्नार्ड के मतानुसार- किसी भी संगठन का मुख्य कार्यकारी निम्नलिखित कार्यों को सम्पादित करता है:

(a) सम्प्रेषण प्रणाली को बनाये रखना,

(b) व्यक्तियों से आवश्यक सेवाएँ प्राप्त करना तथा

(c) संगठन के उद्देश्यों व लक्ष्यों का निर्धारण करना ।

विभिन्न मतों के विश्लेषण के आधार पर मुख्य कार्यपालिका के अग्रलिखित प्रशासनिक कार्य बताये जा सकते हैं:

(i) नीति निर्धारण ( Policy Making):

प्रशासनिक नीति की रूपरेखा तैयार करने का दायित्व मुख्य कार्यपालिका के ऊपर होता है । सामान्य एवं विशिष्ट नीतियों के निर्धारण के सम्बन्ध में महत्वपूर्ण निर्णय मुख्य कार्यपालिका द्वारा ही लिए जाते हैं ।

प्रबन्ध नीति के गम्भीर प्रश्नों का निर्णय भी वही करती है । सैद्धान्तिक दृष्टि से नीति-निर्माण का कार्य व्यवस्थापिका का समझा जाता है, किन्तु व्यवहार में नीति-निर्माण में सर्वाधिक भागेदारी मुख्य कार्यपालिका की ही होती है ।

(ii) नियोजन (Planning):

किसी भी कार्य को करने से पूर्व उसकी योजना तैयार करना नियोजन कहलाता है । मुख्य कार्यपालक अर्थात् प्रधानमन्त्री का यह दायित्व होता है कि वह शासन के कुशल संचालन हेतु मन्त्रियों की सहायता से नीति-निर्माण करें । इन नीतियों को अनुमोदन हेतु व्यवस्थापिका के समक्ष रखा जाता है । व्यवस्थापिका द्वारा अनुमोदित होने के उपरान्त ये नीतियाँ कानून का रूप ले लेती हैं ।

(iii) संगठन निर्माण (Establishment of Organization):

प्रशासनिक नीतियों के क्रियान्वयन हेतु प्रशासनिक सफलता प्राप्त करने के लिए एक सुव्यवस्थित संगठन का होना परम आवश्यक है । संगठन की रूपरेखा व्यवस्थापिका निर्धारित करती है किन्तु उसका आन्तरिक स्वरूप कार्यपालिका द्वारा निर्धारित किया जाता है । प्रशासनिक लक्ष्यों की पूर्ति हेतु विभिन्न उपकरण यथा ब्यूरो, निगम, समितियाँ आदि नियुक्त की जाती हैं । किन्हीं विशिष्ट लक्ष्यों की पूर्ति हेतु समय-समय पर आयोगों की नियुक्ति भी की जाती है ।

(iv) कार्मिकों की व्यवस्था (Staffing):

मुख्य कार्यपालिका के शासन के संचालन हेतु पदाधिकारियों की नियुक्ति करती है । उदाहरणार्थ भारत में राष्ट्रपति राज्यपालों उच्चतम न्यायालय तथा राज्य के उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की नियुक्ति राजदूतों एवं संघ लोक सेवा आयोग के सदस्यों की नियुक्ति मुख्य कार्यपालिका द्वारा ही की जाती है । जिन पदाधिकारियों को वह नियुक्त करती है उन्हें पदच्युत करने का भी अधिकार रखती है ।

(v) निर्देशन (Direction):

मुख्य कार्यकारी का एक महत्वपूर्ण दायित्व अधीनस्थों को आवश्यक निर्देश देना है । वह सम्पूर्ण प्रशासन के कार्यों का निरीक्षण व नियन्त्रण करता है । किसी भी विभाग के कार्यों की जाँच-पड़ताल करने का अधिकार मुख्य कार्यकारी को प्राप्त होता है । वह नियमों, विनियमों एवं आदेशों के द्वारा प्रशासन का निर्देशन करता है ।

(vi) समन्वय (Co-Ordination):

संगठन की विभिन्न इकाइयों के मध्य समन्वय स्थापित करना मुख्य कार्यपालिका का प्रमुख कर्त्तव्य है । समन्वय की प्रक्रिया में यह देखा जाता है कि विभिन्न इकाइयों के मध्य सहयोग की भावना होनी चाहिए तथा कार्यों में दोहराव (Duplication) नहीं होना चाहिए । निम्न स्तरों में उत्पन्न संघर्ष या मतभेद का निवारण भी मुख्य कार्यपालिका के द्वारा ही किया जाता है ।

(vii) बजट बनाना (Budgeting):

प्रशासनिक दायित्वों की पूर्ति हेतु धन की आवश्यकता होती है । इस हेतु कार्यपालिका बजट तैयार करके व्यवस्थापिका के सम्मुख प्रस्तुत करती है । व्यवस्थापिका द्वारा स्वीकृति मिलने के बाद इसे क्रियान्वित किया जाता है । राज्य के सम्पूर्ण संसाधनों का आकलन करने के बाद ही बजट तैयार किया जाता है । बजट पास होने के बाद राज्यों एवं विभिन्न विभागों के मध्य आवश्यकतानुसार धन वितरित किया जाता है ।

(viii) जन-सम्पर्क (Public Relation):

आधुनिक लोक-कल्याणकारी राज्य में जनहित को सर्वोपरि महत्व दिया जाता है जनहित तभी सम्भव हो सकता है जबकि जन-आकांक्षाओं की पूर्ति की जाये ।

जन-आकांक्षाओं एवं जनता की आवश्यकताओं से परिचित होने के लिए जन-सम्पर्क अपरिहार्य है । मुख्य कार्यपालिका द्वारा जन-सम्पर्क हेतु निम्नलिखित साधन प्रयोग में लाये जाते हैं- दूरदर्शन, आकाशवाणी, समाचार-पत्र, पत्रकार सम्मेलन आदि । इसी उद्देश्य को दृष्टिगत रखते हुए ‘जन सम्पर्क विभाग’ की स्थापना की जाती है ।

उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि मुख्य कार्यपालिका को व्यापक अधिकार व दायित्व सौंपे जाते हैं जिनकी पूर्ति पर्याप्त शक्ति स्रोतों एवं वैयक्तिक गुणों के आधार पर ही सम्भव है । उसे व्यापक रूप से संवैधानिक शक्तियाँ सौंपी जाती हैं ।

वैधानिक समर्थन के साथ ही जन-समर्थन व जन-सहयोग भी परमावश्यक है । इसके अतिरिक्त, मुख्य कार्यपालिका में व्यक्तिगत गुणों यथा शारीरिक सामर्थ्य, विवेक, स्थिर व प्रखर बुद्धि, संयम, सहनशीलता, वाक्‌पटुता आदि गुणों का होना भी आवश्यक है उसमें एक अच्छे नेता के गुण भी होने चाहिए ।

नेतृत्व के आधार पर ही सभी अधिकारियों को एकता के सूत्र में बाँधा जा सकता है तथा उन्हें अपने विचारों व नीतियों के अनुकूल ढाला जा सकता है । एक अच्छे नेता के रूप में तीक्ष्ण बुद्धि होनी चाहिए जिससे कि देश की ज्वलन्त समस्याओं का वह सहज ही समाधान प्रस्तुत कर सके । मुख्य कार्यकारी का दृष्टिकोण हर प्रकार से उदार व परिपक्व होना चाहिए ।

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यदि मैं प्रधानमंत्री होता (निबंध) | If I Were the Prime Minister in Hindi

essay on chief in hindi

यदि मैं प्रधानमंत्री होता (निबंध) | If I Were the Prime Minister in Hindi!

हमारा राष्ट्र एक संप्रभुता संपन्न गणराज्य है । यहाँ की जनता अपना नेता चुनने के लिए स्वतंत्र है । हमारा अपना संविधान है । संविधान के अनुसार राष्ट्र का सर्वोच्च नागरिक माननीय राष्ट्रपति से केवल प्रमुख विषयों पर ही विचार-विमर्श किया जाता है अथवा अनुमति ली जाती है ।

इस प्रकार देश के प्रधानमंत्री का पद सर्वाधिक महत्वपूर्ण पद हो जाता है । देश के विकास संबंधी नीति-नियम तथा इसके संचालन के प्रमुख दायित्व एवं अधिकार प्रधानमंत्री के ही पास होते हैं । आज हमारे देश में घूसखोरी और रिश्वतखोरी दिनों-दिन बढ़ती चली जा रही है । यह कुप्रथा हमारे समस्त तंत्र को भीतर ही भीतर खोखला कर रही है ।

ADVERTISEMENTS:

एक सामान्य निचले दर्जे के कर्मचारी से लेकर चोटी तक के शीर्षस्थ अधिकारी व नेता सभी भ्रष्टाचार में लिप्त हैं । यदि मैं प्रधानमंत्री होता तो पद ग्रहण करने के उपरांत सर्वप्रथम मेरा प्रयास यही होता, शासन में फैले भ्रष्टाचार व घूसखोरी को त्वरित गति से समाप्त करना ।

भ्रष्टाचार एवं रिश्वतखोरी व भाई-भतीजावाद आदि बुराइयाँ देश की प्रगति के मार्ग के प्रमुख अवरोधक हैं । मैं यह बात भी भली-भाँति समझता हूँ कि बिना इस पर अंकुश लगाए हमारी कार्य-योजनाएँ पूर्ण रूप से सफल नहीं हो सकती हैं क्योंकि गरीब व निचले दर्जे के उत्थान के लिए सरकार जो भी आर्थिक मदद मुहैया कराती है उसे उच्च अधिकारी व अन्य भ्रष्ट लोग गंतव्य तक पहुँचने ही नहीं देते ।

इसे रोकने के लिए सर्वप्रथम मैं यह व्यवस्था करूँगा कि भविष्य में अपराधी तत्व के लोगों को चुनाव टिकट न मिल सके अपितु वही लोग सत्ता में आ सकें जो गुणी एवं पद के लिए सर्वथा योग्य हों । इसके अतिरिक्त मेरा प्रयास होगा कि जनता का धन जो सरकार के पास कर तथा अन्य माध्यमों से जमा होता है उसका सदुपयोग हो । अपने मंत्रिपरिषद के समस्त मंत्रियों के वे खर्च रोक दिए जाने चाहिए जो आवश्यक नहीं हैं ।

इसके अतिरिक्त उन भ्रष्ट नेताओं, अधिकारियों एवं अन्य कर्मचारियों के प्रति कड़ी कार्यवाई की जाएगी जो भ्रष्टाचार के आरोपी पाए जाते हैं । इसमें किसी को भी छूट नहीं दी जाएगी भले ही वह किसी पद पर क्यों न हो, क्योंकि कानून की दृष्टि में सभी एक समान होते हैं ।

हमारे देश की दो-तिहाई से भी अधिक जनसंख्या गाँवों में निवास करती है जहाँ अधिकांश ऐसे लोग हैं जो आजादी के पाँच दशकों बाद भी गरीबी रेखा से नीचे रहकर जीवन-यापन कर रहे हैं । मेरी विकास योजनाओं का केंद्र बिंदु यही लोग होंगे ।

मेरा प्रयास होगा कि उन सभी को रोटी, कपड़ा एवं घर जैसी आधारभूत आवश्यकताएँ मुहैया कराई जा सकें ताकि ये भी देश के विकास में स्वस्थ शरीर एवं स्वस्थ मस्तिष्क के साथ कंधे से कंधा मिलाकर आगे आ सकें ।

आज का युग विज्ञान का युग है । हालाँकि पूर्व प्रधानमंत्रियों के शासनकाल में इस दिशा पर कुछ कार्य हुआ है परंतु अभी भी हम अन्य विकसित देशों की तुलना में विज्ञान और तकनीकी के क्षेत्र में काफी पिछड़े हुए हैं । आज विज्ञान की प्रगति एवं देश की प्रगति दोनों ही एक-दूसरे के पूरक हैं । मेरा यह प्रयास होगा कि इस दिशा में ठोस कदम उठाए जाएँ और इसका लाभ केवल नगरीय सीमाओं तक ही सीमित न रहे अपितु गाँवों व कस्बों तक पहुँचे ।

देश के लिए यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है कि आज सरकारी खजाने का एक बहुत बड़ा हिस्सा हमारे रक्षा बजट में खर्च करना पड़ता है । यही धन यदि विकास कार्यों में लगे तो देश का विकास और तीव्र गति से होगा ।

मेरा प्रयास होगा कि अपने सभी पड़ोसी देशों से हमारे संबंध मधुर हों ताकि सभी स्वेच्छा से अपना-अपना रक्षा-व्यय घटाकर इस क्षेत्र में विकासात्मक गतिविधियों को बढ़ावा दें । विश्व मंच पर मैं विश्व शांति एवं निरस्त्रीकरण के अपने प्रयास में तेजी लाऊंगा ताकि मानव कल्याण की दिशा में और भी अधिक कार्य हो सके ।

मेरे पूर्व सभी प्रधानमंत्रियों ने स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर लाल किले के प्राचीर से अपने भाषण के दौरान अपनी योजनाओं का खुलासा किया परंतु उसका आकलन करने का पता है अधिकांश योजनाएँ कागज पर ही रह जाती हैं तथा कथनी और करनी में समन्वय नहीं हो पाता है । मेरा प्रयास होगा कि हम जिन योजनाओं को अंतिम रूप देते हैं उन पर पूर्ण दृढ़ता के साथ अमल हो क्योंकि ऐसी समस्त योजनाओं में केवल समय एवं धन का अपव्यय होता है जिन पर अमल नहीं किया जाता है ।

प्रधानमंत्री का पद अत्यंत जिम्मेदारी का पद है । अल्प समय में बहुत कुछ करना होता है । मेरा पूर्ण प्रयास होगा कि मैं निजी स्वार्थों से ऊपर उठकर देश के प्रति पूर्णतया समर्पित हो अपने उत्तरदायित्व का भली-भाँति निर्वाह करूँ तथा देश की गौरवशाली परंपरा व संस्कृति को कायम रख सकूँ । देश की जनता ने जिस आशा और विश्वास के साथ मुझे यह दायित्व सौंपा है मैं उन पर खरा उतर सकूँ क्योंकि, गाँ धीजी के ही कथनानुसार

” वैष्णव जन तो तेने कहिए , जो पीर पराई जाने रे ! ”

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हिंदी में निबंध (Essay in Hindi/ Hindi me Nibandh) - परिभाषा, प्रकार, टॉपिक्स और निबंध लिखने का तरीका जानें

Updated On: June 13, 2024 02:48 pm IST

निबंध किसे कहते हैं? (What is Essay?)

निबंध की परिभाषा (definition of essay in hindi).

  • निबंध के कितने अंग होते हैं 
  • निबंध कितने प्रकार का होता है (Types of Essay in …

हिंदी में निबंध (Essay in Hindi/ Hindi me Nibandh)

निबंध के कितने अंग होते हैं

निबंध कितने प्रकार का होता है (types of essay in hindi ), हिंदी में निबंध (essay in hindi) लिखते समय निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना चाहिए-.

  • निबंध लिखना शुरू करने से पहले संबंधित विषय के बारे में जानकारी इकठ्ठा कर लें।
  • कोशीश करें कि विचार क्रमबद्ध रूप से लिखे जाएं और उनमे सभी महत्वपूर्ण बिंदु शामिल हों।
  • निबंध को सरल भाषा में लिखने का प्रयास करें और रोचक बनाएं।
  • निबंध में उपयोग किए गए शब्द छोटे और प्रभावशाली होने चाहिए।

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निबंध (Hindi Essay)

आजकल के समय में निबंध लिखना एक महत्वपूर्ण विषय बन चुका है, खासतौर से छात्रों के लिए। ऐसे कई अवसर आते हैं, जब आपको विभिन्न विषयों पर निबंधों की आवश्यकता होती है। निबंधों के इसी महत्व को ध्यान में रखते हुए हमने इन निबंधों को तैयार किया है। हमारे द्वारा तैयार किये गये निबंध बहुत ही क्रमबद्ध तथा सरल हैं और हमारे वेबसाइट पर छोटे तथा बड़े दोनो प्रकार की शब्द सीमाओं के निबंध उपलब्ध हैं।

निबंध क्या है?

कई बार लोगो द्वारा यह प्रश्न पूछा जाता है कि आखिर निबंध क्या है? और निबंध की परिभाषा क्या है? वास्तव में निबंध एक प्रकार की गद्य रचना होती है। जिसे क्रमबद्ध तरीके से लिखा गया हो। एक अच्छा निबंध लिखने के लिए हमें कुछ बातों का ध्यान देना चाहिए जैसे कि – हमारे द्वारा लिखित निबंध की भाषा सरल हो, इसमें विचारों की पुनरावृत्ति न हो, निबंध के विभिन्न हिस्सों को शीर्षकों में बांटा गया हो आदि।

यदि आप इन बातों का ध्यान रखगें तो एक अच्छा निबंध(Hindi Nibandh) अवश्य लिख पायेंगे। अपने निबंधों के लेखन के पश्चात उसे एक बार अवश्य पढ़े क्योंकि ऐसा करने पर आप अपनी त्रुटियों को ठीक करके अपने निबंधों को और भी अच्छा बना पायेंगे।

हम अपने वेबसाइट पर कक्षा 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11, 12 और कॉलेज विद्यार्थियों के लिए विभिन्न प्रकार के निबंध(Essay in Hindi) उपलब्ध करा रहे हैं| इस प्रकार के निबंध आपके बच्चों और विद्यार्थियों की अतिरिक्त पाठ्यक्रम गतिविधियों जैसे: निबंध लेखन, वाद-विवाद प्रतियोगिता और विचार-विमर्श में बहुत सहायक हो साबित होंगे।

ये सारे ‎हिन्दी निबंध (Hindi Essay) बहुत आसान शब्दों का प्रयोग करके बहुत ही सरल और आसान भाषा में लिखे गए हैं। इन निबंधों को कोई भी व्यक्ति बहुत ही आसानी से समझ सकता है। हमारे वेबसाइट पर स्कूलों में दिये जाने वाले निबंधों के साथ ही अन्य कई प्रकार के निबंध उपलब्ध है। जो आपके परीक्षाओं तथा अन्य कार्यों के लिए काफी सहायक सिद्ध होंगे, इन दिये गये निबंधों का आप अपनी आवश्यकता अनुसार उपयोग कर सकते हैं। ऐसे ही अन्य सामग्रियों के लिए भी आप हमारी वेबसाइट का प्रयोग कर सकते हैं।

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Thursday, August 1, 2024 August 01, 2024 News URL:  https://www.flmd.uscourts.gov/programs/annual-high-school-essay-contests

Retraction Watch

Tracking retractions as a window into the scientific process

Cancer paper retracted 11 years after reported plagiarism

essay on chief in hindi

In November 2013, Elisabeth Bik reported five papers containing what she thought was “pretty obvious” plagiarized text in Karger’s Digestive Diseases to the journal’s editor in chief. 

Eleven years later, one of the bunch, “ Inflammatory Bowel Disease as a Risk Factor for Colorectal Cancer ,” has been retracted. 

The decision took “a ridiculously long time,” Bik said. “Perhaps they forgot to act, perhaps they lost my email, perhaps they thought it was too much trouble to check, or perhaps they were not sure what to do back in 2013, when I contacted them.” 

The recently retracted paper, by Milan Lukáš , a professor and head of the Clinical and Research Center for Intestinal Inflammation in Prague, has 81 citations, according to Clarivate’s Web of Science. About three-quarters of the citations came since 2013. 

“Following publication, concerns were raised to our attention that portions of the text in the article have been reproduced without appropriate attribution,” the retraction notice states. “Given the extent of the insufficiently attributed text reuse this article is being retracted.”

Lukáš “did not respond to requests to comment on the concerns within the given timeframe despite multiple attempts of contact,” according to the notice but he agreed with the retraction. 

Lukáš told Retraction Watch he is “disappointed,” because the article was written so long ago. He doesn’t understand the retraction, he said, but it’s a “decision I have to accept.”

The journal should not have taken more than a decade to retract it, Bik told Retraction Watch. 

Three of the five papers she reported in 2013 were retracted the following year. The remaining article, “ Carcinogenesis in Inflammatory Bowel Disease ” remains in the literature and has 55 citations since its publication in 2007. 

“It is strange how these five papers, all from the same journal, and all with very similar plagiarism concerns, were addressed so differently,” Bik said.

Gráinne McNamara, a research integrity manager for Karger, declined to comment on the investigation conducted after Bik’s initial report in 2013 citing staffing changes and limited access to archived communications from that period. Since then, “much has changed in research integrity at Karger.” 

McNamara said the concerns about Lukáš’ article and the other unretracted paper were brought to the attention of the publisher’s ethics team in 2023 and 2022 respectively, after Bik left comments on PubPeer. “The team, which was established in 2021, immediately opened an investigation for both cases of the overlap, following the relevant COPE flowchart,” McNamara said, referring to the Committee on Publication Ethics.

For the 2007 paper, Karger reviewed the concerns in context of the journal’s instructions on plagiarism when the article was published. Although the referencing in the paper is not in line with the current journal policy, McNamara said “we did not believe there was an intention to deceive a reader of the mini-review.”

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2 thoughts on “cancer paper retracted 11 years after reported plagiarism”.

https://retractionwatch.com/2022/10/20/paper-co-authored-by-sleuth-elisabeth-bik-marked-with-expression-of-concern/

Perhaps I am missing something, but I never can understand why publishers & Editors-in-Chief are so reluctant to remove articles that pollute the scientific literature. The garnered citations of the affected paper further undermine other papers creating a snowball effect for other publishers, journals, editors & authors. My guess is that they think that there will be damage to the journal’s reputation if the retraction(s) appear. I would suggest that by holding off for years & in this case a whole decade, they have really undermined the journal’s credibility by waiting for so long to make the retraction. The end result for them ends up being much worse than the effect from initial (rapid) retraction… They have failed to consider that many authors might changed their minds to submit to a journal that has acquired a flawed reputation because of the publisher/editor inactions.

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चीफ़ की दावत

Chief ki dawat, bhisham sahani, भीष्म साहनी.

भीष्म साहनी

और अधिक भीष्म साहनी

आज मिस्टर शामनाथ के घर चीफ़ की दावत थी।

शामनाथ और उनकी धर्मपत्नी को पसीना पोंछने की फ़ुर्सत न थी। पत्नी ड्रेसिंग गाउन पहने, उलझे हुए बालों का जूड़ा बनाए मुँह पर फैली हुई सुर्ख़ी और पाउडर को मले और मिस्टर शामनाथ सिगरेट पर सिगरेट फूँकते हुए चीज़ों की फ़ेहरिस्त हाथ में थामे, एक कमरे से दूसरे कमरे में आ-जा रहे थे।

आख़िर पाँच बजते-बजते तैयारी मुकम्मल होने लगी। कुर्सियाँ, मेज़, तिपाइयाँ, नैपकिन, फूल, सब बरामदे में पहुँच गए। ड्रिंक का इंतिज़ाम बैठक में कर दिया गया। अब घर का फालतू सामान अलमारियों के पीछे और पलंगों के नीचे छिपाया जाने लगा। तभी शामनाथ के सामने सहसा एक अड़चन खड़ी हो गई, माँ का क्या होगा?

इस बात की ओर न उनका और न उनकी कुशल गृहिणी का ध्यान गया था। मिस्टर शामनाथ, श्रीमती की ओर घूम कर अँग्रेज़ी में बोले—'माँ का क्या होगा?'

श्रीमती काम करते-करते ठहर गईं, और थोड़ी देर तक सोचने के बाद बोलीं—'इन्हें पिछवाड़े इनकी सहेली के घर भेज दो, रात-भर बेशक वहीं रहें। कल आ जाएँ।'

शामनाथ सिगरेट मुँह में रखे, सिकुड़ी आँखों से श्रीमती के चेहरे की ओर देखते हुए पल-भर सोचते रहे, फिर सिर हिला कर बोले—'नहीं, मैं नहीं चाहता कि उस बुढ़िया का आना-जाना यहाँ फिर से शुरू हो। पहले ही बड़ी मुश्किल से बंद किया था। माँ से कहें कि जल्दी ही खाना खा के शाम को ही अपनी कोठरी में चली जाएँ। मेहमान कहीं आठ बजे आएँगे इससे पहले ही अपने काम से निबट लें।'

सुझाव ठीक था। दोनों को पसंद आया। मगर फिर सहसा श्रीमती बोल उठीं—'जो वह सो गईं और नींद में ख़र्राटे लेने लगीं, तो? साथ ही तो बरामदा है, जहाँ लोग खाना खाएँगे।'

'तो इन्हें कह देंगे कि अंदर से दरवाज़ा बंद कर लें। मैं बाहर से ताला लगा दूँगा। या माँ को कह देता हूँ कि अंदर जा कर सोएँ नहीं, बैठी रहें, और क्या?'

'और जो सो गई, तो? डिनर का क्या मालूम कब तक चले। ग्यारह-ग्यारह बजे तक तो तुम ड्रिंक ही करते रहते हो।'

शामनाथ कुछ खीज उठे, हाथ झटकते हुए बोले—'अच्छी-भली यह भाई के पास जा रही थीं। तुमने यूँ ही ख़ुद अच्छा बनने के लिए बीच में टाँग अड़ा दी!'

'वाह! तुम माँ और बेटे की बातों में मैं क्यों बुरी बनूँ? तुम जानो और वह जानें।'

मिस्टर शामनाथ चुप रहे। यह मौक़ा बहस का न था, समस्या का हल ढूँढ़ने का था। उन्होंने घूम कर माँ की कोठरी की ओर देखा। कोठरी का दरवाज़ा बरामदे में खुलता था। बरामदे की ओर देखते हुए झट से बोले—मैंने सोच लिया है,—और उन्हीं क़दमों माँ की कोठरी के बाहर जा खड़े हुए। माँ दीवार के साथ एक चौकी पर बैठी, दुपट्टे में मुँह-सिर लपेटे, माला जप रही थीं। सुबह से तैयारी होती देखते हुए माँ का भी दिल धड़क रहा था। बेटे के दफ़्तर का बड़ा साहब घर पर आ रहा है, सारा काम सुभीते से चल जाए।

माँ, आज तुम खाना जल्दी खा लेना। मेहमान लोग साढ़े सात बजे आ जाएँगे।

माँ ने धीरे से मुँह पर से दुपट्टा हटाया और बेटे को देखते हुए कहा, आज मुझे खाना नहीं खाना है, बेटा, तुम जो जानते हो, माँस-मछली बने, तो मैं कुछ नहीं खाती।

जैसे भी हो, अपने काम से जल्दी निबट लेना।

अच्छा, बेटा।

और माँ, हम लोग पहले बैठक में बैठेंगे। उतनी देर तुम यहाँ बरामदे में बैठना। फिर जब हम यहाँ आ जाएँ, तो तुम ग़ुसलख़ाने के रास्ते बैठक में चली जाना।

माँ अवाक बेटे का चेहरा देखने लगीं। फिर धीरे से बोलीं—अच्छा बेटा।

और माँ आज जल्दी सो नहीं जाना। तुम्हारे ख़र्राटों की आवाज़ दूर तक जाती है।

माँ लज्जित-सी आवाज़ में बोली—क्या करूँ, बेटा, मेरे बस की बात नहीं है। जब से बीमारी से उठी हूँ, नाक से साँस नहीं ले सकती।

मिस्टर शामनाथ ने इंतिज़ाम तो कर दिया, फिर भी उनकी उधेड़-बुन ख़त्म नहीं हुई। जो चीफ़ अचानक उधर आ निकला, तो? आठ-दस मेहमान होंगे, देसी अफ़सर, उनकी स्त्रियाँ होंगी, कोई भी ग़ुसलख़ाने की तरफ़ जा सकता है। क्षोभ और क्रोध में वह झुँझलाने लगे। एक कुर्सी को उठा कर बरामदे में कोठरी के बाहर रखते हुए बोले—आओ माँ, इस पर ज़रा बैठो तो।

माँ माला सँभालतीं, पल्ला ठीक करती उठीं, और धीरे से कुर्सी पर आ कर बैठ गई।

यूँ नहीं, माँ, टाँगें ऊपर चढ़ा कर नहीं बैठते। यह खाट नहीं हैं।

माँ ने टाँगें नीचे उतार लीं।

और ख़ुदा के वास्ते नंगे पाँव नहीं घूमना। न ही वह खड़ाऊँ पहन कर सामने आना। किसी दिन तुम्हारी यह खड़ाऊँ उठा कर मैं बाहर फेंक दूँगा।

माँ चुप रहीं।

कपड़े कौन से पहनोगी, माँ?

जो है, वही पहनूँगी, बेटा! जो कहो, पहन लूँ।

मिस्टर शामनाथ सिगरेट मुँह में रखे, फिर अधखुली आँखों से माँ की ओर देखने लगे, और माँ के कपड़ों की सोचने लगे। शामनाथ हर बात में तरतीब चाहते थे। घर का सब संचालन उनके अपने हाथ में था। खूँटियाँ कमरों में कहाँ लगाई जाएँ, बिस्तर कहाँ पर बिछे, किस रंग के पर्दे लगाएँ जाएँ, श्रीमती कौन-सी साड़ी पहनें, मेज़ किस साइज़ की हो... शामनाथ को चिंता थी कि अगर चीफ़ का साक्षात माँ से हो गया, तो कहीं लज्जित नहीं होना पड़े। माँ को सिर से पाँव तक देखते हुए बोले—तुम सफ़ेद क़मीज़ और सफ़ेद सलवार पहन लो, माँ। पहन के आओ तो, ज़रा देखूँ।

माँ धीरे से उठीं और अपनी कोठरी में कपड़े पहनने चली गईं।

यह माँ का झमेला ही रहेगा, उन्होंने फिर अँग्रेज़ी में अपनी स्त्री से कहा—कोई ढंग की बात हो, तो भी कोई कहे। अगर कहीं कोई उल्टी-सीधी बात हो गई, चीफ़ को बुरा लगा, तो सारा मज़ा जाता रहेगा।

माँ सफ़ेद क़मीज़ और सफ़ेद सलवार पहन कर बाहर निकलीं। छोटा-सा क़द, सफ़ेद कपड़ों में लिपटा, छोटा-सा सूखा हुआ शरीर, धुँधली आँखें, केवल सिर के आधे झड़े हुए बाल पल्ले की ओट में छिप पाए थे। पहले से कुछ ही कम कुरूप नज़र आ रही थीं।

चलो, ठीक है। कोई चूड़ियाँ-वूड़ियाँ हों, तो वह भी पहन लो। कोई हर्ज नहीं।

चूड़ियाँ कहाँ से लाऊँ, बेटा? तुम तो जानते हो, सब जेवर तुम्हारी पढ़ाई में बिक गए।

यह वाक्य शामनाथ को तीर की तरह लगा। तिनक कर बोले—यह कौन-सा राग छेड़ दिया, माँ! सीधा कह दो, नहीं हैं ज़ेवर, बस! इससे पढ़ाई-वढ़ाई का क्या तअल्लुक़ है! जो ज़ेवर बिका, तो कुछ बन कर ही आया हूँ, निरा लँडूरा तो नहीं लौट आया। जितना दिया था, उससे दुगना ले लेना।

मेरी जीभ जल जाय, बेटा, तुमसे ज़ेवर लूँगी? मेरे मुँह से यूँ ही निकल गया। जो होते, तो लाख बार पहनती!

साढ़े पाँच बज चुके थे। अभी मिस्टर शामनाथ को ख़ुद भी नहा-धो कर तैयार होना था। श्रीमती कब की अपने कमरे में जा चुकी थीं। शामनाथ जाते हुए एक बार फिर माँ को हिदायत करते गए—माँ, रोज़ की तरह गुमसुम बन के नहीं बैठी रहना। अगर साहब इधर आ निकलें और कोई बात पूछें, तो ठीक तरह से बात का जवाब देना।

मैं न पढ़ी, न लिखी, बेटा, मैं क्या बात करूँगी। तुम कह देना, माँ अनपढ़ है, कुछ जानती-समझती नहीं। वह नहीं पूछेगा।

सात बजते-बजते माँ का दिल धक-धक करने लगा। अगर चीफ़ सामने आ गया और उसने कुछ पूछा, तो वह क्या जवाब देंगी। अँग्रेज़ को तो दूर से ही देख कर घबरा उठती थीं, यह तो अमरीकी है। न मालूम क्या पूछे। मैं क्या कहूँगी। माँ का जी चाहा कि चुपचाप पिछवाड़े विधवा सहेली के घर चली जाएँ। मगर बेटे के हुक्म को कैसे टाल सकती थीं। चुपचाप कुर्सी पर से टाँगें लटकाए वहीं बैठी रही।

एक कामयाब पार्टी वह है, जिसमें ड्रिंक कामयाबी से चल जाएँ। शामनाथ की पार्टी सफलता के शिखर चूमने लगी। वार्तालाप उसी रौ में बह रहा था, जिस रौ में गिलास भरे जा रहे थे। कहीं कोई रूकावट न थी, कोई अड़चन न थी। साहब को व्हिस्की पसंद आई थी। मेमसाहब को पर्दे पसंद आए थे, सोफ़ा-कवर का डिज़ाइन पसंद आया था, कमरे की सजावट पसंद आई थी। इससे बढ़ कर क्या चाहिए। साहब तो ड्रिंक के दूसरे दौर में ही चुटकुले और कहानियाँ कहने लग गए थे। दफ़्तर में जितना रोब रखते थे, यहाँ पर उतने ही दोस्त-परवर हो रहे थे और उनकी स्त्री, काला गाउन पहने, गले में सफ़ेद मोतियों का हार, सेंट और पाउड़र की महक से ओत-प्रोत, कमरे में बैठी सभी देसी स्त्रियों की आराधना का केंद्र बनी हुई थीं। बात-बात पर हँसतीं, बात-बात पर सिर हिलातीं और शामनाथ की स्त्री से तो ऐसे बातें कर रही थीं, जैसे उनकी पुरानी सहेली हों।

और इसी रो में पीते-पिलाते साढ़े दस बज गए। वक़्त गुज़रते पता ही न चला।

आख़िर सब लोग अपने-अपने गिलासों में से आख़िरी घूँट पी कर खाना खाने के लिए उठे और बैठक से बाहर निकले। आगे-आगे शामनाथ रास्ता दिखाते हुए, पीछे चीफ़ और दूसरे मेहमान।

बरामदे में पहुँचते ही शामनाथ सहसा ठिठक गए। जो दृश्य उन्होंने देखा, उससे उनकी टाँगें लड़खड़ा गई, और क्षण-भर में सारा नशा हिरन होने लगा। बरामदे में ऐन कोठरी के बाहर माँ अपनी कुर्सी पर ज्यों-की-त्यों बैठी थीं। मगर दोनों पाँव कुर्सी की सीट पर रखे हुए, और सिर दाएँ से बाएँ और बाएँ से दाएँ झूल रहा था और मुँह में से लगातार गहरे ख़र्राटों की आवाज़ें आ रही थीं। जब सिर कुछ देर के लिए टेढ़ा हो कर एक तरफ़ को थम जाता, तो ख़र्राटें और भी गहरे हो उठते। और फिर जब झटके-से नींद टूटती, तो सिर फिर दाएँ से बाएँ झूलने लगता। पल्ला सिर पर से खिसक आया था, और माँ के झरे हुए बाल, आधे गंजे सिर पर अस्त-व्यस्त बिखर रहे थे।

देखते ही शामनाथ क्रुद्ध हो उठे। जी चाहा कि माँ को धक्का दे कर उठा दें, और उन्हें कोठरी में धकेल दें, मगर ऐसा करना संभव न था, चीफ़ और बाक़ी मेहमान पास खड़े थे।

माँ को देखते ही देसी अफ़सरों की कुछ स्त्रियाँ हँस दीं कि इतने में चीफ़ ने धीरे से कहा—पुअर डियर!

माँ हड़बड़ा के उठ बैठीं। सामने खड़े इतने लोगों को देख कर ऐसी घबराई कि कुछ कहते न बना। झट से पल्ला सिर पर रखती हुई खड़ी हो गईं और ज़मीन को देखने लगीं। उनके पाँव लड़खड़ाने लगे और हाथों की उँगलियाँ थर-थर काँपने लगीं।

माँ, तुम जाके सो जाओ, तुम क्यों इतनी देर तक जाग रही थीं?—और खिसियाई हुई नज़रों से शामनाथ चीफ़ के मुँह की ओर देखने लगे।

चीफ़ के चेहरे पर मुस्कुराहट थी। वह वहीं खड़े-खड़े बोले, नमस्ते!

माँ ने झिझकते हुए, अपने में सिमटते हुए दोनों हाथ जोड़े, मगर एक हाथ दुपट्टे के अंदर माला को पकड़े हुए था, दूसरा बाहर, ठीक तरह से नमस्ते भी न कर पाई। शामनाथ इस पर भी खिन्न हो उठे।

इतने में चीफ़ ने अपना दायाँ हाथ, हाथ मिलाने के लिए माँ के आगे किया। माँ और भी घबरा उठीं।

माँ, हाथ मिलाओ।

पर हाथ कैसे मिलातीं? दाएँ हाथ में तो माला थी। घबराहट में माँ ने बायाँ हाथ ही साहब के दाएँ हाथ में रख दिया। शामनाथ दिल ही दिल में जल उठे। देसी अफ़सरों की स्त्रियाँ खिलखिला कर हँस पड़ीं।

यूँ नहीं, माँ! तुम तो जानती हो, दायाँ हाथ मिलाया जाता है। दायाँ हाथ मिलाओ।

मगर तब तक चीफ़ माँ का बायाँ हाथ ही बार-बार हिला कर कह रहे थे—हाउ डू यू डू?

कहो माँ, मैं ठीक हूँ, ख़ैरियत से हूँ।

माँ कुछ बड़बड़ाई।

माँ कहती हैं, मैं ठीक हूँ। कहो माँ, हाउ डू यू डू।

माँ धीरे से सकुचाते हुए बोलीं—हौ डू डू ..

एक बार फिर क़हक़हा उठा।

वातावरण हल्का होने लगा। साहब ने स्थिति सँभाल ली थी। लोग हँसने-चहकने लगे थे। शामनाथ के मन का क्षोभ भी कुछ-कुछ कम होने लगा था।

साहब अपने हाथ में माँ का हाथ अब भी पकड़े हुए थे, और माँ सिकुड़ी जा रही थीं। साहब के मुँह से शराब की बू आ रही थी।

शामनाथ अँग्रेज़ी में बोले—मेरी माँ गाँव की रहने वाली हैं। उमर भर गाँव में रही हैं। इसलिए आपसे लजाती है।

साहब इस पर ख़ुश नज़र आए। बोले—सच? मुझे गाँव के लोग बहुत पसंद हैं, तब तो तुम्हारी माँ गाँव के गीत और नाच भी जानती होंगी? चीफ़ खुशी से सिर हिलाते हुए माँ को टकटकी बाँधे देखने लगे।

माँ, साहब कहते हैं, कोई गाना सुनाओ। कोई पुराना गीत तुम्हें तो कितने ही याद होंगे।

माँ धीरे से बोली—मैं क्या गाऊँगी बेटा। मैंने कब गाया है?

वाह, माँ! मेहमान का कहा भी कोई टालता है?

साहब ने इतना रीझ से कहा है, नहीं गाओगी, तो साहब बुरा मानेंगे।

मैं क्या गाऊँ, बेटा। मुझे क्या आता है?

वाह! कोई बढ़िया टप्पे सुना दो। दो पत्तर अनाराँ दे...

देसी अफ़सर और उनकी स्त्रियों ने इस सुझाव पर तालियाँ पीटी। माँ कभी दीन दृष्टि से बेटे के चेहरे को देखतीं, कभी पास खड़ी बहू के चेहरे को।

इतने में बेटे ने गंभीर आदेश-भरे लिहाज में कहा—माँ!

इसके बाद हाँ या ना सवाल ही न उठता था। माँ बैठ गईं और क्षीण, दुर्बल, लरज़ती आवाज़ में एक पुराना विवाह का गीत गाने लगीं –

हरिया नी माए, हरिया नी भैणे

हरिया ते भागी भरिया है!

देसी स्त्रियाँ खिलखिला के हँस उठीं। तीन पंक्तियाँ गा के माँ चुप हो गईं।

बरामदा तालियों से गूँज उठा। साहब तालियाँ पीटना बंद ही न करते थे। शामनाथ की खीज प्रसन्नता और गर्व में बदल उठी थी। माँ ने पार्टी में नया रंग भर दिया था।

तालियाँ थमने पर साहब बोले—पंजाब के गाँवों की दस्तकारी क्या है?

शामनाथ ख़ुशी में झूम रहे थे। बोले—ओ, बहुत कुछ—साहब! मैं आपको एक सेट उन चीज़ों का भेंट करूँगा। आप उन्हें देख कर ख़ुश होंगे।

मगर साहब ने सिर हिला कर अँग्रेज़ी में फिर पूछा—नहीं, मैं दुकानों की चीज़ नहीं माँगता। पंजाबियों के घरों में क्या बनता है, औरतें ख़ुद क्या बनाती हैं?

शामनाथ कुछ सोचते हुए बोले—लड़कियाँ गुड़ियाँ बनाती हैं, और फुलकारियाँ बनाती हैं।

फुलकारी क्या?

शामनाथ फुलकारी का मतलब समझाने की असफल चेष्टा करने के बाद माँ को बोले—क्यों, माँ, कोई पुरानी फुलकारी घर में हैं?

माँ चुपचाप अंदर गईं और अपनी पुरानी फुलकारी उठा लाईं।

साहब बड़ी रुचि से फुलकारी देखने लगे। पुरानी फुलकारी थी, जगह-जगह से उसके तागे टूट रहे थे और कपड़ा फटने लगा था। साहब की रुचि को देख कर शामनाथ बोले—यह फटी हुई है, साहब, मैं आपको नई बनवा दूँगा। माँ बना देंगी। क्यों, माँ साहब को फुलकारी बहुत पसंद हैं, इन्हें ऐसी ही एक फुलकारी बना दोगी न?

माँ चुप रहीं। फिर डरते-डरते धीरे से बोलीं—अब मेरी नज़र कहाँ है, बेटा! बूढ़ी आँखें क्या देखेंगी?

मगर माँ का वाक्य बीच में ही तोड़ते हुए शामनाथ साहब को बोले—वह ज़रूर बना देंगी। आप उसे देख कर ख़ुश होंगे।

साहब ने सिर हिलाया, धन्यवाद किया और हल्के-हल्के झूमते हुए खाने की मेज़ की ओर बढ़ गए। बाक़ी मेहमान भी उनके पीछे-पीछे हो लिए।

जब मेहमान बैठ गए और माँ पर से सबकी आँखें हट गईं, तो माँ धीरे से कुर्सी पर से उठीं, और सबसे नज़रें बचाती हुई अपनी कोठरी में चली गईं।

मगर कोठरी में बैठने की देर थी कि आँखों में छल-छल आँसू बहने लगे। वह दुपट्टे से बार-बार उन्हें पोंछतीं, पर वह बार-बार उमड़ आते, जैसे बरसों का बाँध तोड़ कर उमड़ आए हों। माँ ने बहुतेरा दिल को समझाया, हाथ जोड़े, भगवान का नाम लिया, बेटे के चिरायु होने की प्रार्थना की, बार-बार आँखें बंद कीं, मगर आँसू बरसात के पानी की तरह जैसे थमने में ही न आते थे।

आधी रात का वक़्त होगा। मेहमान खाना खा कर एक-एक करके जा चुके थे। माँ दीवार से सट कर बैठी आँखें फाड़े दीवार को देखे जा रही थीं। घर के वातावरण में तनाव ढीला पड़ चुका था। मुहल्ले की निस्तब्धता शामनाथ के घर भी छा चुकी थी, केवल रसोई में प्लेटों के खनकने की आवाज़ आ रही थी। तभी सहसा माँ की कोठरी का दरवाज़ा ज़ोर से खटकने लगा।

माँ, दरवाज़ा खोलो।

माँ का दिल बैठ गया। हड़बड़ा कर उठ बैठीं। क्या मुझसे फिर कोई भूल हो गई? माँ कितनी देर से अपने आपको कोस रही थीं कि क्यों उन्हें नींद आ गई, क्यों वह ऊँघने लगीं। क्या बेटे ने अभी तक क्षमा नहीं किया? माँ उठीं और काँपते हाथों से दरवाज़ा खोल दिया।

दरवाज़े खुलते ही शामनाथ झूमते हुए आगे बढ़ आए और माँ को आलिंगन में भर लिया।

ओ अम्मी! तुमने तो आज रंग ला दिया! ...साहब तुमसे इतना ख़ुश हुआ कि क्या कहूँ। ओ अम्मी! अम्मी!

माँ की छोटी-सी काया सिमट कर बेटे के आलिंगन में छिप गई। माँ की आँखों में फिर आँसू आ गए। उन्हें पोंछती हुई धीरे से बोली—बेटा, तुम मुझे हरिद्वार भेज दो। मैं कब से कह रही हूँ।

शामनाथ का झूमना सहसा बंद हो गया और उनकी पेशानी पर फिर तनाव के बल पड़ने लगे। उनकी बाँहें माँ के शरीर पर से हट आईं।

क्या कहा, माँ? यह कौन-सा राग तुमने फिर छेड़ दिया?

शामनाथ का क्रोध बढ़ने लगा था, बोलते गए—तुम मुझे बदनाम करना चाहती हो, ताकि दुनिया कहे कि बेटा माँ को अपने पास नहीं रख सकता।

नहीं बेटा, अब तुम अपनी बहू के साथ जैसा मन चाहे रहो। मैंने अपना खा-पहन लिया। अब यहाँ क्या करूँगी। जो थोड़े दिन ज़िंदगानी के बाक़ी हैं, भगवान का नाम लूँगी। तुम मुझे हरिद्वार भेज दो!

तुम चली जाओगी, तो फुलकारी कौन बनाएगा? साहब से तुम्हारे सामने ही फुलकारी देने का इक़रार किया है।

मेरी आँखें अब नहीं हैं, बेटा, जो फुलकारी बना सकूँ। तुम कहीं और से बनवा लो। बनी-बनाई ले लो।

माँ, तुम मुझे धोखा देके यूँ चली जाओगी? मेरा बनता काम बिगाड़ोगी? जानती नहीं, साहब ख़ुश होगा, तो मुझे तरक़्क़ी मिलेगी!

माँ चुप हो गईं। फिर बेटे के मुँह की ओर देखती हुई बोली—क्या तेरी तरक़्क़ी होगी? क्या साहब तेरी तरक़्क़ी कर देगा? क्या उसने कुछ कहा है?

कहा नहीं, मगर देखती नहीं, कितना ख़ुश गया है। कहता था, जब तेरी माँ फुलकारी बनाना शुरू करेंगी, तो मैं देखने आऊँगा कि कैसे बनाती हैं। जो साहब ख़ुश हो गया, तो मुझे इससे बड़ी नौकरी भी मिल सकती है, मैं बड़ा अफ़सर बन सकता हूँ।

माँ के चेहरे का रंग बदलने लगा, धीरे-धीरे उनका झुर्रियों-भरा मुँह खिलने लगा, आँखों में हल्की-हल्की चमक आने लगी।

तो तेरी तरक़्क़ी होगी बेटा?

तरक़्क़ी यूँ ही हो जाएगी? साहब को ख़ुश रखूँगा, तो कुछ करेगा, वरना उसकी ख़िदमत करनेवाले और थोड़े हैं?

तो मैं बना दूँगी, बेटा, जैसे बन पड़ेगा, बना दूँगी।

और माँ दिल ही दिल में फिर बेटे के उज्ज्वल भविष्य की कामनाएँ करने लगीं और मिस्टर शामनाथ, अब सो जाओ, माँ, कहते हुए, तनिक लड़खड़ाते हुए अपने कमरे की ओर घूम गए।

aaj mistar shamnath ke ghar chief ki dawat thi

shamnath aur unki dharmpatni ko pasina ponchhne ki fursat na thi patni dressing gown pahne, uljhe hue balon ka juDa banaye munh par phaili hui surkhi aur pauDar ko male aur mistar shamnath cigarette par cigarette phunkte hue chizon ki fehrist hath mein thame, ek kamre se dusre kamre mein aa ja rahe the

akhir panch bajte bajte taiyari mukammal hone lagi kursiyan, mez, tipaiyan, naipkin, phool, sab baramde mein pahunch gaye drink ka intizam baithak mein kar diya gaya ab ghar ka phaltu saman almariyon ke pichhe aur palangon ke niche chhipaya jane laga tabhi shamnath ke samne sahsa ek aDchan khaDi ho gai, man ka kya hoga?

is baat ki or na unka aur na unki kushal grihinai ka dhyan gaya tha mistar shamnath, shirimati ki or ghoom kar angrezi mein bole—man ka kya hoga?

shirimati kaam karte karte thahar gain, aur thoDi der tak sochne ke baad bolin—inhen pichhwaDe inki saheli ke ghar bhej do, raat bhar beshak wahin rahen kal aa jayen

shamnath cigarette munh mein rakhe, sikuDi ankhon se shirimati ke chehre ki or dekhte hue pal bhar sochte rahe, phir sir hila kar bole—nahin, main nahin chahta ki us buDhiya ka aana jana yahan phir se shuru ho pahle hi baDi mushkil se band kiya tha man se kahen ki jaldi hi khana kha ke sham ko hi apni kothari mein chali jayen mehman kahin aath baje ayenge isse pahle hi apne kaam se nibat len

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wah! tum man aur bete ki baton mein main kyon buri banun? tum jano aur wo janen

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achchha, beta

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man ne tangen niche utar leen

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man chup rahin

kapDe kaun se pahnogi, man?

jo hai, wahi pahnungi, beta! jo kaho, pahan loon

mistar shamnath cigarette munh mein rakhe, phir adhakhuli ankhon se man ki or dekhne lage, aur man ke kapDon ki sochne lage shamnath har baat mein tartib chahte the ghar ka sab sanchalan unke apne hath mein tha khuntiyan kamron mein kahan lagai jayen, bistar kahan par bichhe, kis rang ke parde lagayen jayen, shirimati kaun si saDi pahnen, mez kis saiz ki ho shamnath ko chinta thi ki agar chief ka sakshat man se ho gaya, to kahin lajjit nahin hona paDe man ko sir se panw tak dekhte hue bole—tum safed qamiz aur safed salwar pahan lo, man pahan ke aao to, zara dekhun

man dhire se uthin aur apni kothari mein kapDe pahanne chali gain

ye man ka jhamela hi rahega, unhonne phir angrezi mein apni istri se kaha—koi Dhang ki baat ho, to bhi koi kahe agar kahin koi ulti sidhi baat ho gai, chief ko bura laga, to sara maza jata rahega

man safed qamiz aur safed salwar pahan kar bahar niklin chhota sa qad, safed kapDon mein lipta, chhota sa sukha hua sharir, dhundhli ankhen, kewal sir ke aadhe jhaDe hue baal palle ki ot mein chhip pae the pahle se kuch hi kam kurup nazar aa rahi theen

chalo, theek hai koi chuDiyan wuDiyan hon, to wo bhi pahan lo koi harj nahin

chuDiyan kahan se laun, beta? tum to jante ho, sab jewar tumhari paDhai mein bik gaye

ye waky shamnath ko teer ki tarah laga tinak kar bole—yah kaun sa rag chheD diya, man! sidha kah do, nahin hain zewar, bus! isse paDhai waDhai ka kya talluq hai! jo zewar bika, to kuch ban kar hi aaya hoon, nira lanDura to nahin laut aaya jitna diya tha, usse dugna le lena

meri jeebh jal jay, beta, tumse zewar lungi? mere munh se yoon hi nikal gaya jo hote, to lakh bar pahanti!

saDhe panch baj chuke the abhi mistar shamnath ko khu bhi nha dho kar taiyar hona tha shirimati kab ki apne kamre mein ja chuki theen shamnath jate hue ek bar phir man ko hidayat karte gaye—man, roz ki tarah gumsum ban ke nahin baithi rahna agar sahab idhar aa niklen aur koi baat puchhen, to theek tarah se baat ka jawab dena

main na paDhi, na likhi, beta, main kya baat karungi tum kah dena, man anpaDh hai, kuch janti samajhti nahin wo nahin puchhega

sat bajte bajte man ka dil dhak dhak karne laga agar chief samne aa gaya aur usne kuch puchha, to wo kya jawab dengi angrez ko to door se hi dekh kar ghabra uthti theen, ye to americi hai na malum kya puchhe main kya kahungi man ka ji chaha ki chupchap pichhwaDe widhwa saheli ke ghar chali jayen magar bete ke hukm ko kaise tal sakti theen chupchap kursi par se tangen latkaye wahin baithi rahi

ek kamyab party wo hai, jismen drink kamyabi se chal jayen shamnath ki party saphalta ke sikhar chumne lagi wartalap usi rau mein bah raha tha, jis rau mein gilas bhare ja rahe the kahin koi rukawat na thi, koi aDchan na thi sahab ko whisky pasand i thi memasahab ko parde pasand aaye the, sofa kawar ka design pasand aaya tha, kamre ki sajawat pasand i thi isse baDh kar kya chahiye sahab to drink ke dusre daur mein hi chutkule aur kahaniyan kahne lag gaye the daftar mein jitna rob rakhte the, yahan par utne hi dost parwar ho rahe the aur unki istri, kala gown pahne, gale mein safed motiyon ka haar, sent aur pauDar ki mahak se ot prot, kamre mein baithi sabhi desi istriyon ki aradhana ka kendr bani hui theen baat baat par hanstin, baat baat par sir hilatin aur shamnath ki istri se to aise baten kar rahi theen, jaise unki purani saheli hon

aur isi ro mein pite pilate saDhe das baj gaye waqt guzarte pata hi na chala

akhir sab log apne apne gilason mein se akhiri ghoont pi kar khana khane ke liye uthe aur baithak se bahar nikle aage aage shamnath rasta dikhate hue, pichhe chief aur dusre mehman

baramde mein pahunchte hi shamnath sahsa thithak gaye jo drishya unhonne dekha, usse unki tangen laDkhaDa gai, aur kshan bhar mein sara nasha hiran hone laga baramde mein ain kothari ke bahar man apni kursi par jyon ki tyon baithi theen magar donon panw kursi ki seat par rakhe hue, aur sir dayen se bayen aur bayen se dayen jhool raha tha aur munh mein se lagatar gahre kharraton ki awazen aa rahi theen jab sir kuch der ke liye teDha ho kar ek taraf ko tham jata, to kharraten aur bhi gahre ho uthte aur phir jab jhatke se neend tutti, to sir phir dayen se bayen jhulne lagta palla sir par se khisak aaya tha, aur man ke jhare hue baal, aadhe ganje sir par ast wyast bikhar rahe the

dekhte hi shamnath kruddh ho uthe ji chaha ki man ko dhakka de kar utha den, aur unhen kothari mein dhakel den, magar aisa karna sambhaw na tha, chief aur baqi mehman pas khaDe the

man ko dekhte hi desi afsaron ki kuch striyan hans deen ki itne mein chief ne dhire se kaha—puar Dear!

man haDbaDa ke uth baithin samne khaDe itne logon ko dekh kar aisi ghabrai ki kuch kahte na bana jhat se palla sir par rakhti hui khaDi ho gain aur zamin ko dekhne lagin unke panw laDkhaDane lage aur hathon ki ungliyan thar thar kanpne lagin

man, tum jake so jao, tum kyon itni der tak jag rahi thin?—aur khisiyai hui nazron se shamnath chief ke munh ki or dekhne lage

chief ke chehre par muskurahat thi wo wahin khaDe khaDe bole, namaste!

man ne jhijhakte hue, apne mein simatte hue donon hath joDe, magar ek hath dupatte ke andar mala ko pakDe hue tha, dusra bahar, theek tarah se namaste bhi na kar pai shamnath is par bhi khinn ho uthe

itne mein chief ne apna dayan hath, hath milane ke liye man ke aage kiya man aur bhi ghabra uthin

man, hath milao

par hath kaise milatin? dayen hath mein to mala thi ghabrahat mein man ne bayan hath hi sahab ke dayen hath mein rakh diya shamnath dil hi dil mein jal uthe desi afsaron ki striyan khilkhila kar hans paDin

yoon nahin, man! tum to janti ho, dayan hath milaya jata hai dayan hath milao

magar tab tak chief man ka bayan hath hi bar bar hila kar kah rahe the—hau Du yu Doo?

kaho man, main theek hoon, khairiyat se hoon

man kuch baDabDai

man kahti hain, main theek hoon kaho man, hau Du yu Du

man dhire se sakuchate hue bolin—hau Du Du

ek bar phir qahqaha utha

watawarn halka hone laga sahab ne sthiti sanbhal li thi log hansne chahakne lage the shamnath ke man ka kshaobh bhi kuch kuch kam hone laga tha

sahab apne hath mein man ka hath ab bhi pakDe hue the, aur man sikuDi ja rahi theen sahab ke munh se sharab ki bu aa rahi thi

shamnath angrezi mein bole—meri man ganw ki rahne wali hain umar bhar ganw mein rahi hain isliye aapse lajati hai

sahab is par khush nazar aaye bole—sach? mujhe ganw ke log bahut pasand hain, tab to tumhari man ganw ke geet aur nach bhi janti hongi? chief khushi se sir hilate hue man ko takatki bandhe dekhne lage

man, sahab kahte hain, koi gana sunao koi purana geet tumhein to kitne hi yaad honge

man dhire se boli—main kya gaungi beta mainne kab gaya hai?

wah, man! mehman ka kaha bhi koi talta hai?

sahab ne itna reejh se kaha hai, nahin gaogi, to sahab bura manenge

main kya gaun, beta mujhe kya aata hai?

wah! koi baDhiya tappe suna do do pattar anaran de

desi afsar aur unki istriyon ne is sujhaw par taliyan piti man kabhi deen drishti se bete ke chehre ko dekhtin, kabhi pas khaDi bahu ke chehre ko

itne mein bete ne gambhir adesh bhare lihaj mein kaha—man!

iske baad han ya na sawal hi na uthta tha man baith gain aur kshain, durbal, larazti awaz mein ek purana wiwah ka geet gane lagin –

hariya ni maye, hariya ni bhaine

hariya te bhagi bhariya hai!

desi striyan khilkhila ke hans uthin teen panktiyan ga ke man chup ho gain

baramada taliyon se goonj utha sahab taliyan pitna band hi na karte the shamnath ki kheej prasannata aur garw mein badal uthi thi man ne party mein naya rang bhar diya tha

taliyan thamne par sahab bole—panjab ke ganwon ki dastakari kya hai?

shamnath khushi mein jhoom rahe the bole—o, bahut kuchh—sahab! main aapko ek set un chizon ka bhent karunga aap unhen dekh kar khush honge

magar sahab ne sir hila kar angrezi mein phir puchha—nahin, main dukanon ki cheez nahin mangta punjabiyon ke gharon mein kya banta hai, aurten khu kya banati hain?

shamnath kuch sochte hue bole—laDkiyan guDiyan banati hain, aur phulkariyan banati hain

phulkari kya?

shamnath phulkari ka matlab samjhane ki asaphal cheshta karne ke baad man ko bole—kyon, man, koi purani phulkari ghar mein hain?

man chupchap andar gain aur apni purani phulkari utha lain

sahab baDi ruchi se phulkari dekhne lage purani phulkari thi, jagah jagah se uske tage toot rahe the aur kapDa phatne laga tha sahab ki ruchi ko dekh kar shamnath bole—yah phati hui hai, sahab, main aapko nai banwa dunga man bana dengi kyon, man sahab ko phulkari bahut pasand hain, inhen aisi hi ek phulkari bana dogi n?

man chup rahin phir Darte Darte dhire se bolin—ab meri nazar kahan hai, beta! buDhi ankhen kya dekhengi?

magar man ka waky beech mein hi toDte hue shamnath sahab ko bole—wah zarur bana dengi aap use dekh kar khush honge

sahab ne sir hilaya, dhanyawad kiya aur halke halke jhumte hue khane ki mez ki or baDh gaye baqi mehman bhi unke pichhe pichhe ho liye

jab mehman baith gaye aur man par se sabki ankhen hat gain, to man dhire se kursi par se uthin, aur sabse nazren bachati hui apni kothari mein chali gain

magar kothari mein baithne ki der thi ki ankhon mein chhal chhal ansu bahne lage wo dupatte se bar bar unhen ponchhtin, par wo bar bar umaD aate, jaise barson ka bandh toD kar umaD aaye hon man ne bahutera dil ko samjhaya, hath joDe, bhagwan ka nam liya, bete ke chirayu hone ki pararthna ki, bar bar ankhen band keen, magar ansu barsat ke pani ki tarah jaise thamne mein hi na aate the

adhi raat ka waqt hoga mehman khana kha kar ek ek karke ja chuke the man diwar se sat kar baithi ankhen phaDe diwar ko dekhe ja rahi theen ghar ke watawarn mein tanaw Dhila paD chuka tha muhalle ki nistabdhata shamnath ke ghar bhi chha chuki thi, kewal rasoi mein pleton ke khanakne ki awaz aa rahi thi tabhi sahsa man ki kothari ka darwaza zor se khatakne laga

man, darwaza kholo

man ka dil baith gaya haDbaDa kar uth baithin kya mujhse phir koi bhool ho gai? man kitni der se apne aapko kos rahi theen ki kyon unhen neend aa gai, kyon wo unghne lagin kya bete ne abhi tak kshama nahin kiya? man uthin aur kanpte hathon se darwaza khol diya

darwaze khulte hi shamnath jhumte hue aage baDh aaye aur man ko alingan mein bhar liya

o ammi! tumne to aaj rang la diya! sahab tumse itna khush hua ki kya kahun o ammi! ammi!

man ki chhoti si kaya simat kar bete ke alingan mein chhip gai man ki ankhon mein phir ansu aa gaye unhen ponchhti hui dhire se boli—beta, tum mujhe haridwar bhej do main kab se kah rahi hoon

shamnath ka jhumna sahsa band ho gaya aur unki peshani par phir tanaw ke bal paDne lage unki banhen man ke sharir par se hat ain

kya kaha, man? ye kaun sa rag tumne phir chheD diya?

shamnath ka krodh baDhne laga tha, bolte gaye—tum mujhe badnam karna chahti ho, taki duniya kahe ki beta man ko apne pas nahin rakh sakta

nahin beta, ab tum apni bahu ke sath jaisa man chahe raho mainne apna kha pahan liya ab yahan kya karungi jo thoDe din zindagani ke baqi hain, bhagwan ka nam lungi tum mujhe haridwar bhej do!

tum chali jaogi, to phulkari kaun banayega? sahab se tumhare samne hi phulkari dene ka iqrar kiya hai

meri ankhen ab nahin hain, beta, jo phulkari bana sakun tum kahin aur se banwa lo bani banai le lo

man, tum mujhe dhokha deke yoon chali jaogi? mera banta kaam bigaDogi? janti nahin, sahab khush hoga, to mujhe taraqqi milegi!

man chup ho gain phir bete ke munh ki or dekhti hui boli—kya teri taraqqi hogi? kya sahab teri taraqqi kar dega? kya usne kuch kaha hai?

kaha nahin, magar dekhti nahin, kitna khush gaya hai kahta tha, jab teri man phulkari banana shuru karengi, to main dekhne aunga ki kaise banati hain jo sahab khush ho gaya, to mujhe isse baDi naukari bhi mil sakti hai, main baDa afsar ban sakta hoon

man ke chehre ka rang badalne laga, dhire dhire unka jhurriyon bhara munh khilne laga, ankhon mein halki halki chamak aane lagi

to teri taraqqi hogi beta?

taraqqi yoon hi ho jayegi? sahab ko khush rakhunga, to kuch karega, warna uski khidmat karnewale aur thoDe hain?

to main bana dungi, beta, jaise ban paDega, bana dungi

aur man dil hi dil mein phir bete ke ujjwal bhawishya ki kamnayen karne lagin aur mistar shamnath, ab so jao, man, kahte hue, tanik laDkhaDate hue apne kamre ki or ghoom gaye

  • पुस्तक : मेरी प्रिय कहानियाँ (पृष्ठ 13)
  • रचनाकार : भीष्म साहनी
  • प्रकाशन : राजपाल एंड संस, दिल्ली
  • संस्करण : 2009

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हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

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‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

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Hindi Essay (Hindi Nibandh) 100 विषयों पर हिंदी निबंध लेखन

Hindi Essay (Hindi Nibandh) | 100 विषयों पर हिंदी निबंध लेखन – Essays in Hindi on 100 Topics

हिंदी निबंध: हिंदी हमारी राष्ट्रीय भाषा है। हमारे हिंदी भाषा कौशल को सीखना और सुधारना भारत के अधिकांश स्थानों में सेवा करने के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। स्कूली दिनों से ही हम हिंदी भाषा सीखते थे। कुछ स्कूल और कॉलेज हिंदी के अतिरिक्त बोर्ड और निबंध बोर्ड में निबंध लेखन का आयोजन करते हैं, छात्रों को बोर्ड परीक्षा में हिंदी निबंध लिखने की आवश्यकता होती है।

निबंध – Nibandh In Hindi – Hindi Essay Topics

  • सच्चा धर्म पर निबंध – (True Religion Essay)
  • राष्ट्र निर्माण में युवाओं का योगदान निबंध – (Role Of Youth In Nation Building Essay)
  • अतिवृष्टि पर निबंध – (Flood Essay)
  • राष्ट्र निर्माण में शिक्षक की भूमिका पर निबंध – (Role Of Teacher In Nation Building Essay)
  • नक्सलवाद पर निबंध – (Naxalism In India Essay)
  • साहित्य समाज का दर्पण है हिंदी निबंध – (Literature And Society Essay)
  • नशे की दुष्प्रवृत्ति निबंध – (Drug Abuse Essay)
  • मन के हारे हार है मन के जीते जीत पर निबंध – (It is the Mind which Wins and Defeats Essay)
  • एक राष्ट्र एक कर : जी०एस०टी० ”जी० एस०टी० निबंध – (Gst One Nation One Tax Essay)
  • युवा पर निबंध – (Youth Essay)
  • अक्षय ऊर्जा : सम्भावनाएँ और नीतियाँ निबंध – (Renewable Sources Of Energy Essay)
  • मूल्य-वृदधि की समस्या निबंध – (Price Rise Essay)
  • परहित सरिस धर्म नहिं भाई निबंध – (Philanthropy Essay)
  • पर्वतीय यात्रा पर निबंध – (Parvatiya Yatra Essay)
  • असंतुलित लिंगानुपात निबंध – (Sex Ratio Essay)
  • मनोरंजन के आधुनिक साधन पर निबंध – (Means Of Entertainment Essay)
  • मेट्रो रेल पर निबंध – (Metro Rail Essay)
  • दूरदर्शन पर निबंध – (Importance Of Doordarshan Essay)
  • दूरदर्शन और युवावर्ग पर निबंध – (Doordarshan Essay)
  • बस्ते का बढ़ता बोझ पर निबंध – (Baste Ka Badhta Bojh Essay)
  • महानगरीय जीवन पर निबंध – (Metropolitan Life Essay)
  • दहेज नारी शक्ति का अपमान है पे निबंध – (Dowry Problem Essay)
  • सुरीला राजस्थान निबंध – (Folklore Of Rajasthan Essay)
  • राजस्थान में जल संकट पर निबंध – (Water Scarcity In Rajasthan Essay)
  • खुला शौच मुक्त गाँव पर निबंध – (Khule Me Soch Mukt Gaon Par Essay)
  • रंगीला राजस्थान पर निबंध – (Rangila Rajasthan Essay)
  • राजस्थान के लोकगीत पर निबंध – (Competition Of Rajasthani Folk Essay)
  • मानसिक सुख और सन्तोष निबंध – (Happiness Essay)
  • मेरे जीवन का लक्ष्य पर निबंध नंबर – (My Aim In Life Essay)
  • राजस्थान में पर्यटन पर निबंध – (Tourist Places Of Rajasthan Essay)
  • नर हो न निराश करो मन को पर निबंध – (Nar Ho Na Nirash Karo Man Ko Essay)
  • राजस्थान के प्रमुख लोक देवता पर निबंध – (The Major Folk Deities Of Rajasthan Essay)
  • देशप्रेम पर निबंध – (Patriotism Essay)
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  • विज्ञापन के प्रभाव – (Paragraph Speech On Vigyapan Ke Prabhav Essay)
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  • समाचार-पत्र का महत्त्व पर निबंध – (Importance Of Newspaper Essay)
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  • समाचार पत्र पर निबंध (Newspaper Essay in Hindi)
  • व्यायाम का महत्व निबंध – (Importance Of Exercise Essay)
  • विद्यार्थी जीवन पर निबंध – (Student Life Essay)
  • विद्यार्थी और राजनीति पर निबंध – (Students And Politics Essay)
  • विद्यार्थी और अनुशासन पर निबंध – (Vidyarthi Aur Anushasan Essay)
  • मेरा प्रिय त्यौहार निबंध – (My Favorite Festival Essay)
  • मेरा प्रिय पुस्तक पर निबंध – (My Favourite Book Essay)
  • पुस्तक मेला पर निबंध – (Book Fair Essay)
  • मेरा प्रिय खिलाड़ी निबंध हिंदी में – (My Favorite Player Essay)
  • सर्वधर्म समभाव निबंध – (All Religions Are Equal Essay)
  • शिक्षा में खेलकूद का स्थान निबंध – (Shiksha Mein Khel Ka Mahatva Essay)a
  • खेल का महत्व पर निबंध – (Importance Of Sports Essay)
  • क्रिकेट पर निबंध – (Cricket Essay)
  • ट्वेन्टी-20 क्रिकेट पर निबंध – (T20 Cricket Essay)
  • मेरा प्रिय खेल-क्रिकेट पर निबंध – (My Favorite Game Cricket Essay)
  • पुस्तकालय पर निबंध – (Library Essay)
  • सूचना प्रौद्योगिकी और मानव कल्याण निबंध – (Information Technology Essay)
  • कंप्यूटर और टी.वी. का प्रभाव निबंध – (Computer Aur Tv Essay)
  • कंप्यूटर की उपयोगिता पर निबंध – (Computer Ki Upyogita Essay)
  • कंप्यूटर शिक्षा पर निबंध – (Computer Education Essay)
  • कंप्यूटर के लाभ पर निबंध – (Computer Ke Labh Essay)
  • इंटरनेट पर निबंध – (Internet Essay)
  • विज्ञान: वरदान या अभिशाप पर निबंध – (Science Essay)
  • शिक्षा का गिरता स्तर पर निबंध – (Falling Price Level Of Education Essay)
  • विज्ञान के गुण और दोष पर निबंध – (Advantages And Disadvantages Of Science Essay)
  • विद्यालय में स्वास्थ्य शिक्षा निबंध – (Health Education Essay)
  • विद्यालय का वार्षिकोत्सव पर निबंध – (Anniversary Of The School Essay)
  • विज्ञान के वरदान पर निबंध – (The Gift Of Science Essays)
  • विज्ञान के चमत्कार पर निबंध (Wonder Of Science Essay in Hindi)
  • विकास पथ पर भारत निबंध – (Development Of India Essay)
  • कम्प्यूटर : आधुनिक यन्त्र–पुरुष – (Computer Essay)
  • मोबाइल फोन पर निबंध (Mobile Phone Essay)
  • मेरी अविस्मरणीय यात्रा पर निबंध – (My Unforgettable Trip Essay)
  • मंगल मिशन (मॉम) पर निबंध – (Mars Mission Essay)
  • विज्ञान की अद्भुत खोज कंप्यूटर पर निबंध – (Vigyan Ki Khoj Kampyootar Essay)
  • भारत का उज्जवल भविष्य पर निबंध – (Freedom Is Our Birthright Essay)
  • सारे जहाँ से अच्छा हिंदुस्तान हमारा निबंध इन हिंदी – (Sare Jahan Se Achha Hindustan Hamara Essay)
  • डिजिटल इंडिया पर निबंध (Essay on Digital India)
  • भारतीय संस्कृति पर निबंध – (India Culture Essay)
  • राष्ट्रभाषा हिन्दी निबंध – (National Language Hindi Essay)
  • भारत में जल संकट निबंध – (Water Crisis In India Essay)
  • कौशल विकास योजना पर निबंध – (Skill India Essay)
  • हमारा प्यारा भारत वर्ष पर निबंध – (Mera Pyara Bharat Varsh Essay)
  • अनेकता में एकता : भारत की विशेषता – (Unity In Diversity Essay)
  • महंगाई की समस्या पर निबन्ध – (Problem Of Inflation Essay)
  • महंगाई पर निबंध – (Mehangai Par Nibandh)
  • आरक्षण : देश के लिए वरदान या अभिशाप निबंध – (Reservation System Essay)
  • मेक इन इंडिया पर निबंध (Make In India Essay In Hindi)
  • ग्रामीण समाज की समस्याएं पर निबंध – (Problems Of Rural Society Essay)
  • मेरे सपनों का भारत पर निबंध – (India Of My Dreams Essay)
  • भारतीय राजनीति में जातिवाद पर निबंध – (Caste And Politics In India Essay)
  • भारतीय नारी पर निबंध – (Indian Woman Essay)
  • आधुनिक नारी पर निबंध – (Modern Women Essay)
  • भारतीय समाज में नारी का स्थान निबंध – (Women’s Role In Modern Society Essay)
  • चुनाव पर निबंध – (Election Essay)
  • चुनाव स्थल के दृश्य का वर्णन निबन्ध – (An Election Booth Essay)
  • पराधीन सपनेहुँ सुख नाहीं पर निबंध – (Dependence Essay)
  • परमाणु शक्ति और भारत हिंदी निंबध – (Nuclear Energy Essay)
  • यदि मैं प्रधानमंत्री होता तो हिंदी निबंध – (If I were the Prime Minister Essay)
  • आजादी के 70 साल निबंध – (India ofter 70 Years Of Independence Essay)
  • भारतीय कृषि पर निबंध – (Indian Farmer Essay)
  • संचार के साधन पर निबंध – (Means Of Communication Essay)
  • भारत में दूरसंचार क्रांति हिंदी में निबंध – (Telecom Revolution In India Essay)
  • दूरसंचार में क्रांति निबंध – (Revolution In Telecommunication Essay)
  • राष्ट्रीय एकता का महत्व पर निबंध (Importance Of National Integration)
  • भारत की ऋतुएँ पर निबंध – (Seasons In India Essay)
  • भारत में खेलों का भविष्य पर निबंध – (Future Of Sports Essay)
  • किसी खेल (मैच) का आँखों देखा वर्णन पर निबंध – (Kisi Match Ka Aankhon Dekha Varnan Essay)
  • राजनीति में अपराधीकरण पर निबंध – (Criminalization Of Indian Politics Essay)
  • प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर हिन्दी निबंध – (Narendra Modi Essay)
  • बाल मजदूरी पर निबंध – (Child Labour Essay)
  • भ्रष्टाचार पर निबंध (Corruption Essay in Hindi)
  • महिला सशक्तिकरण पर निबंध – (Women Empowerment Essay)
  • बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ पर निबंध (Beti Bachao Beti Padhao)
  • गरीबी पर निबंध (Poverty Essay in Hindi)
  • स्वच्छ भारत अभियान पर निबंध (Swachh Bharat Abhiyan Essay)
  • बाल विवाह एक अभिशाप पर निबंध – (Child Marriage Essay)
  • राष्ट्रीय एकीकरण पर निबंध – (Importance of National Integration Essay)
  • आतंकवाद पर निबंध (Terrorism Essay in hindi)
  • सड़क सुरक्षा पर निबंध (Road Safety Essay in Hindi)
  • बढ़ती भौतिकता घटते मानवीय मूल्य पर निबंध – (Increasing Materialism Reducing Human Values Essay)
  • गंगा की सफाई देश की भलाई पर निबंध – (The Good Of The Country: Cleaning The Ganges Essay)
  • सत्संगति पर निबंध – (Satsangati Essay)
  • महिलाओं की समाज में भूमिका पर निबंध – (Women’s Role In Society Today Essay)
  • यातायात के नियम पर निबंध – (Traffic Safety Essay)
  • बेटी बचाओ पर निबंध – (Beti Bachao Essay)
  • सिनेमा या चलचित्र पर निबंध – (Cinema Essay In Hindi)
  • परहित सरिस धरम नहिं भाई पर निबंध – (Parhit Saris Dharam Nahi Bhai Essay)
  • पेड़-पौधे का महत्व निबंध – (The Importance Of Trees Essay)
  • वर्तमान शिक्षा प्रणाली – (Modern Education System Essay)
  • महिला शिक्षा पर निबंध (Women Education Essay In Hindi)
  • महिलाओं की समाज में भूमिका पर निबंध (Women’s Role In Society Essay In Hindi)
  • यदि मैं प्रधानाचार्य होता पर निबंध – (If I Was The Principal Essay)
  • बेरोजगारी पर निबंध (Unemployment Essay)
  • शिक्षित बेरोजगारी की समस्या निबंध – (Problem Of Educated Unemployment Essay)
  • बेरोजगारी समस्या और समाधान पर निबंध – (Unemployment Problem And Solution Essay)
  • दहेज़ प्रथा पर निबंध (Dowry System Essay in Hindi)
  • जनसँख्या पर निबंध – (Population Essay)
  • श्रम का महत्त्व निबंध – (Importance Of Labour Essay)
  • जनसंख्या वृद्धि के दुष्परिणाम पर निबंध – (Problem Of Increasing Population Essay)
  • भ्रष्टाचार : समस्या और निवारण निबंध – (Corruption Problem And Solution Essay)
  • मीडिया और सामाजिक उत्तरदायित्व निबंध – (Social Responsibility Of Media Essay)
  • हमारे जीवन में मोबाइल फोन का महत्व पर निबंध – (Importance Of Mobile Phones Essay In Our Life)
  • विश्व में अत्याधिक जनसंख्या पर निबंध – (Overpopulation in World Essay)
  • भारत में बेरोजगारी की समस्या पर निबंध – (Problem Of Unemployment In India Essay)
  • गणतंत्र दिवस पर निबंध – (Republic Day Essay)
  • भारत के गाँव पर निबंध – (Indian Village Essay)
  • गणतंत्र दिवस परेड पर निबंध – (Republic Day of India Essay)
  • गणतंत्र दिवस के महत्व पर निबंध – (2020 – Republic Day Essay)
  • महात्मा गांधी पर निबंध (Mahatma Gandhi Essay)
  • ए.पी.जे. अब्दुल कलाम पर निबंध – (Dr. A.P.J. Abdul Kalam Essay)
  • परिवार नियोजन पर निबंध – (Family Planning In India Essay)
  • मेरा सच्चा मित्र पर निबंध – (My Best Friend Essay)
  • अनुशासन पर निबंध (Discipline Essay)
  • देश के प्रति मेरे कर्त्तव्य पर निबंध – (My Duty Towards My Country Essay)
  • समय का सदुपयोग पर निबंध – (Samay Ka Sadupyog Essay)
  • नागरिकों के अधिकारों और कर्तव्यों पर निबंध (Rights And Responsibilities Of Citizens Essay In Hindi)
  • ग्लोबल वार्मिंग पर निबंध – (Global Warming Essay)
  • जल जीवन का आधार निबंध – (Jal Jeevan Ka Aadhar Essay)
  • जल ही जीवन है निबंध – (Water Is Life Essay)
  • प्रदूषण की समस्या और समाधान पर लघु निबंध – (Pollution Problem And Solution Essay)
  • प्रकृति संरक्षण पर निबंध (Conservation of Nature Essay In Hindi)
  • वन जीवन का आधार निबंध – (Forest Essay)
  • पर्यावरण बचाओ पर निबंध (Environment Essay)
  • पर्यावरण प्रदूषण पर निबंध (Environmental Pollution Essay in Hindi)
  • पर्यावरण सुरक्षा पर निबंध (Environment Protection Essay In Hindi)
  • बढ़ते वाहन घटता जीवन पर निबंध – (Vehicle Pollution Essay)
  • योग पर निबंध (Yoga Essay)
  • मिलावटी खाद्य पदार्थ और स्वास्थ्य पर निबंध – (Adulterated Foods And Health Essay)
  • प्रकृति निबंध – (Nature Essay In Hindi)
  • वर्षा ऋतु पर निबंध – (Rainy Season Essay)
  • वसंत ऋतु पर निबंध – (Spring Season Essay)
  • बरसात का एक दिन पर निबंध – (Barsat Ka Din Essay)
  • अभ्यास का महत्व पर निबंध – (Importance Of Practice Essay)
  • स्वास्थ्य ही धन है पर निबंध – (Health Is Wealth Essay)
  • महाकवि तुलसीदास का जीवन परिचय निबंध – (Tulsidas Essay)
  • मेरा प्रिय कवि निबंध – (My Favourite Poet Essay)
  • मेरी प्रिय पुस्तक पर निबंध – (My Favorite Book Essay)
  • कबीरदास पर निबन्ध – (Kabirdas Essay)

इसलिए, यह जानना और समझना बहुत महत्वपूर्ण है कि विषय के बारे में संक्षिप्त और कुरकुरा लाइनों के साथ एक आदर्श हिंदी निबन्ध कैसे लिखें। साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं। तो, छात्र आसानी से स्कूल और प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए हिंदी में निबन्ध कैसे लिखें, इसकी तैयारी कर सकते हैं। इसके अलावा, आप हिंदी निबंध लेखन की संरचना, हिंदी में एक प्रभावी निबंध लिखने के लिए टिप्स आदि के बारे में कुछ विस्तृत जानकारी भी प्राप्त कर सकते हैं। ठीक है, आइए हिंदी निबन्ध के विवरण में गोता लगाएँ।

हिंदी निबंध लेखन – स्कूल और प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए हिंदी में निबन्ध कैसे लिखें?

प्रभावी निबंध लिखने के लिए उस विषय के बारे में बहुत अभ्यास और गहन ज्ञान की आवश्यकता होती है जिसे आपने निबंध लेखन प्रतियोगिता या बोर्ड परीक्षा के लिए चुना है। छात्रों को वर्तमान में हो रही स्थितियों और हिंदी में निबंध लिखने से पहले विषय के बारे में कुछ महत्वपूर्ण बिंदुओं के बारे में जानना चाहिए। हिंदी में पावरफुल निबन्ध लिखने के लिए सभी को कुछ प्रमुख नियमों और युक्तियों का पालन करना होगा।

हिंदी निबन्ध लिखने के लिए आप सभी को जो प्राथमिक कदम उठाने चाहिए उनमें से एक सही विषय का चयन करना है। इस स्थिति में आपकी सहायता करने के लिए, हमने सभी प्रकार के हिंदी निबंध विषयों पर शोध किया है और नीचे सूचीबद्ध किया है। एक बार जब हम सही विषय चुन लेते हैं तो विषय के बारे में सभी सामान्य और तथ्यों को एकत्र करते हैं और अपने पाठकों को संलग्न करने के लिए उन्हें अपने निबंध में लिखते हैं।

तथ्य आपके पाठकों को अंत तक आपके निबंध से चिपके रहेंगे। इसलिए, हिंदी में एक निबंध लिखते समय मुख्य बिंदुओं पर ध्यान केंद्रित करें और किसी प्रतियोगिता या बोर्ड या प्रतिस्पर्धी जैसी परीक्षाओं में अच्छा स्कोर करें। ये हिंदी निबंध विषय पहली कक्षा से 10 वीं कक्षा तक के सभी कक्षा के छात्रों के लिए उपयोगी हैं। तो, उनका सही ढंग से उपयोग करें और हिंदी भाषा में एक परिपूर्ण निबंध बनाएं।

हिंदी भाषा में दीर्घ और लघु निबंध विषयों की सूची

हिंदी निबन्ध विषयों और उदाहरणों की निम्न सूची को विभिन्न श्रेणियों में विभाजित किया गया है जैसे कि प्रौद्योगिकी, पर्यावरण, सामान्य चीजें, अवसर, खेल, खेल, स्कूली शिक्षा, और बहुत कुछ। बस अपने पसंदीदा हिंदी निबंध विषयों पर क्लिक करें और विषय पर निबंध के लघु और लंबे रूपों के साथ विषय के बारे में पूरी जानकारी आसानी से प्राप्त करें।

विषय के बारे में समग्र जानकारी एकत्रित करने के बाद, अपनी लाइनें लागू करने का समय और हिंदी में एक प्रभावी निबन्ध लिखने के लिए। यहाँ प्रचलित सभी विषयों की जाँच करें और किसी भी प्रकार की प्रतियोगिताओं या परीक्षाओं का प्रयास करने से पहले जितना संभव हो उतना अभ्यास करें।

हिंदी निबंधों की संरचना

Hindi Essay Parts

उपरोक्त छवि आपको हिंदी निबन्ध की संरचना के बारे में प्रदर्शित करती है और आपको निबन्ध को हिन्दी में प्रभावी ढंग से रचने के बारे में कुछ विचार देती है। यदि आप स्कूल या कॉलेजों में निबंध लेखन प्रतियोगिता में किसी भी विषय को लिखते समय निबंध के इन हिस्सों का पालन करते हैं तो आप निश्चित रूप से इसमें पुरस्कार जीतेंगे।

इस संरचना को बनाए रखने से निबंध विषयों का अभ्यास करने से छात्रों को विषय पर ध्यान केंद्रित करने और विषय के बारे में छोटी और कुरकुरी लाइनें लिखने में मदद मिलती है। इसलिए, यहां संकलित सूची में से अपने पसंदीदा या दिलचस्प निबंध विषय को हिंदी में चुनें और निबंध की इस मूल संरचना का अनुसरण करके एक निबंध लिखें।

हिंदी में एक सही निबंध लिखने के लिए याद रखने वाले मुख्य बिंदु

अपने पाठकों को अपने हिंदी निबंधों के साथ संलग्न करने के लिए, आपको हिंदी में एक प्रभावी निबंध लिखते समय कुछ सामान्य नियमों का पालन करना चाहिए। कुछ युक्तियाँ और नियम इस प्रकार हैं:

  • अपना हिंदी निबंध विषय / विषय दिए गए विकल्पों में से समझदारी से चुनें।
  • अब उन सभी बिंदुओं को याद करें, जो निबंध लिखने शुरू करने से पहले विषय के बारे में एक विचार रखते हैं।
  • पहला भाग: परिचय
  • दूसरा भाग: विषय का शारीरिक / विस्तार विवरण
  • तीसरा भाग: निष्कर्ष / अंतिम शब्द
  • एक निबंध लिखते समय सुनिश्चित करें कि आप एक सरल भाषा और शब्दों का उपयोग करते हैं जो विषय के अनुकूल हैं और एक बात याद रखें, वाक्यों को जटिल न बनाएं,
  • जानकारी के हर नए टुकड़े के लिए निबंध लेखन के दौरान एक नए पैराग्राफ के साथ इसे शुरू करें।
  • अपने पाठकों को आकर्षित करने या उत्साहित करने के लिए जहाँ कहीं भी संभव हो, कुछ मुहावरे या कविताएँ जोड़ें और अपने हिंदी निबंध के साथ संलग्न रहें।
  • विषय या विषय को बीच में या निबंध में जारी रखने से न चूकें।
  • यदि आप संक्षेप में हिंदी निबंध लिख रहे हैं तो इसे 200-250 शब्दों में समाप्त किया जाना चाहिए। यदि यह लंबा है, तो इसे 400-500 शब्दों में समाप्त करें।
  • महत्वपूर्ण हिंदी निबंध विषयों का अभ्यास करते समय इन सभी युक्तियों और बिंदुओं को ध्यान में रखते हुए, आप निश्चित रूप से किसी भी प्रतियोगी परीक्षाओं में कुरकुरा और सही निबंध लिख सकते हैं या फिर सीबीएसई, आईसीएसई जैसी बोर्ड परीक्षाओं में।

हिंदी निबंध लेखन पर अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

1. मैं अपने हिंदी निबंध लेखन कौशल में सुधार कैसे कर सकता हूं? अपने हिंदी निबंध लेखन कौशल में सुधार करने के सर्वोत्तम तरीकों में से एक किताबों और समाचार पत्रों को पढ़ना और हिंदी में कुछ जानकारीपूर्ण श्रृंखलाओं को देखना है। ये चीजें आपकी हिंदी शब्दावली में वृद्धि करेंगी और आपको हिंदी में एक प्रेरक निबंध लिखने में मदद करेंगी।

2. CBSE, ICSE बोर्ड परीक्षा के लिए हिंदी निबंध लिखने में कितना समय देना चाहिए? हिंदी बोर्ड परीक्षा में एक प्रभावी निबंध लिखने पर 20-30 का खर्च पर्याप्त है। क्योंकि परीक्षा हॉल में हर मिनट बहुत महत्वपूर्ण है। इसलिए, सभी वर्गों के लिए समय बनाए रखना महत्वपूर्ण है। परीक्षा से पहले सभी हिंदी निबन्ध विषयों से पहले अभ्यास करें और परीक्षा में निबंध लेखन पर खर्च करने का समय निर्धारित करें।

3. हिंदी में निबंध के लिए 200-250 शब्द पर्याप्त हैं? 200-250 शब्दों वाले हिंदी निबंध किसी भी स्थिति के लिए बहुत अधिक हैं। इसके अलावा, पाठक केवल आसानी से पढ़ने और उनसे जुड़ने के लिए लघु निबंधों में अधिक रुचि दिखाते हैं।

4. मुझे छात्रों के लिए सर्वश्रेष्ठ औपचारिक और अनौपचारिक हिंदी निबंध विषय कहां मिल सकते हैं? आप हमारे पेज से कक्षा 1 से 10 तक के छात्रों के लिए हिंदी में विभिन्न सामान्य और विशिष्ट प्रकार के निबंध विषय प्राप्त कर सकते हैं। आप स्कूलों और कॉलेजों में प्रतियोगिताओं, परीक्षाओं और भाषणों के लिए हिंदी में इन छोटे और लंबे निबंधों का उपयोग कर सकते हैं।

5. हिंदी परीक्षाओं में प्रभावशाली निबंध लिखने के कुछ तरीके क्या हैं? हिंदी में प्रभावी और प्रभावशाली निबंध लिखने के लिए, किसी को इसमें शानदार तरीके से काम करना चाहिए। उसके लिए, आपको इन बिंदुओं का पालन करना चाहिए और सभी प्रकार की परीक्षाओं में एक परिपूर्ण हिंदी निबंध की रचना करनी चाहिए:

  • एक पंच-लाइन की शुरुआत।
  • बहुत सारे विशेषणों का उपयोग करें।
  • रचनात्मक सोचें।
  • कठिन शब्दों के प्रयोग से बचें।
  • आंकड़े, वास्तविक समय के उदाहरण, प्रलेखित जानकारी दें।
  • सिफारिशों के साथ निष्कर्ष निकालें।
  • निष्कर्ष के साथ पंचलाइन को जोड़ना।

निष्कर्ष हमने एक टीम के रूप में हिंदी निबन्ध विषय पर पूरी तरह से शोध किया और इस पृष्ठ पर कुछ मुख्य महत्वपूर्ण विषयों को सूचीबद्ध किया। हमने इन हिंदी निबंध लेखन विषयों को उन छात्रों के लिए एकत्र किया है जो निबंध प्रतियोगिता या प्रतियोगी या बोर्ड परीक्षाओं में भाग ले रहे हैं। तो, हम आशा करते हैं कि आपको यहाँ पर सूची से हिंदी में अपना आवश्यक निबंध विषय मिल गया होगा।

यदि आपको हिंदी भाषा पर निबंध के बारे में अधिक जानकारी की आवश्यकता है, तो संरचना, हिंदी में निबन्ध लेखन के लिए टिप्स, हमारी साइट LearnCram.com पर जाएँ। इसके अलावा, आप हमारी वेबसाइट से अंग्रेजी में एक प्रभावी निबंध लेखन विषय प्राप्त कर सकते हैं, इसलिए इसे अंग्रेजी और हिंदी निबंध विषयों पर अपडेट प्राप्त करने के लिए बुकमार्क करें।

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Tawaifbaazi: Courtesans and Prostitutes in Urdu Hindi Literature

Call for Chapters

Tawaifbaazi : Courtesans and Prostitutes in Urdu Hindi Literature

Editor: Farkhanda Shahid Khan

The intersection of literature and societal issues has long served as a platform for introspection, critique, and exploration. In Urdu Hindi literature, the portrayal of courtesans and prostitutes has been a source of both fascination and controversy, reflecting the intricate interplay of culture, ethics, and human existence. Ismat Chughtai, Sa‘adat Hasan Manto, Krishan Chander, Rajinder Singh Bedi, Agha Shorish Kashmiri, Munshi Premchand, and many other writers of Urdu and Hindi literature have intricately depicted the human experiences, societal norms, and individual choices through their literary works. This call invites scholars, researchers, and practitioners to contribute chapters to an edited collection that scrutinizes the depiction of courtesans and prostitutes in Urdu Hindi literature, exploring contemporary themes and critical perspectives.

This volume intends to make a substantial contribution to the academic field of gender studies, social discourse and South Asian literature.

Chapters are invited that explore, but are not limited to, the following themes:

  • Historical Context and Evolution of Prostitution in Urdu Hindi Literature
  • Courtesans as Patrons and Practitioners of Art Forms
  • Transgressive Narratives in Urdu Hindi Literature
  • Eroticism, Desire and Sensuality in representation of Prostitution
  • Intersectionality, identity and Marginalization of Courtesans and Prostitutes
  • Forbidden Love and Tragic Romance between Courtesans/Prostitutes and their Clients
  • Global Perspectives on Courtesans and Prostitutes in Urdu Hindi Literature
  • Agency and Voice of Courtesans and Prostitutes
  • Feminist and Postcolonial Perspectives on Courtesans and Prostitutes in Urdu Hindi Literature
  • Transnational prostitution as a form of Female Migration
  • Feminist debates on Prostitution, Pornography and Women
  • Health Humanities: Reproductive Health and Prostitution in Urdu Hindi Literature
  • Social Commentary on Prostitution and Reforms  
  • Courtesans, Prostitutes and International Human Rights
  • Urban Spaces and Modernity Shaping Narratives on Courtesans and Prostitutes in Urdu Hindi Literature

 Authors are encouraged to submit original chapters that deepen our comprehension of courtesans and prostitutes in Urdu Hindi literature, providing insightful analyses and fresh interpretations. Contributions from diverse disciplinary and methodological approaches are encouraged, including literary studies, cultural studies, gender studies, history, sociology, and anthropology.

Important Dates

September 05, 2024:  Abstract Submission Deadline

September 19, 2024:  Notification of Abstract Decision

November 25, 2024:  Full Chapter Due

Please submit an abstract of 200-250 words to [email protected] .

Submission guidelines will be provided upon acceptance of the abstract. Each submission will undergo a double blind peer-review process and the book will be published by a prestigious academic publisher in June 2025. For inquiries and further information, please contact us at  [email protected]

We look forward to engaging in a rich and thought-provoking dialogue on this significant yet understudied aspect of Urdu Hindi literature.

About the Editor

Farkhanda Shahid Khanis a feminist researcher, activist, and academic. She teaches contemporary English literature at Government College University Faisalabad. Khan works on Feminism, Marxism, Culture, and Gender & Sexuality with a focus on the Global South. Currently, she is a doctoral fellow in the School of Literatures, Languages & Cultures at the University of Edinburgh and her research delves into the red light districts and brothel quarters in South Asia.

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Hindi got its name from the Persian word Hind, which means ”land of the Indus River”. It is spoken by more than 528 million people as a first language and around 163 million use it as a second language in India, Bangladesh, Mauritius and other parts of South Asia.

Hindi is written with the Devanagari alphabet , developed from the Brahmi script in the 11th century AD. It contains 36 consonants and 12 vowels . In addition, it has its own representations of numbers that follow the Hindu-Arabic numeral system.

  • 14 Independent Vowels (१३ स्वर):  अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ, अं, अः, ऋ, ॠ
  • 36 Consonants (३६ व्यंजन):  क, ख, ग, घ, ङ, च, छ, ज, झ, ञ, ट, ठ, ड, ढ, ण, त, थ, द, ध, न, प, फ, ब, भ, म, य, र, ल, व, श, ष, स, ह
  • 3 Joint Words (संयुक्त अक्षर):  क्ष, त्र, ज्ञ
  • Full Stop (पूर्ण विराम):  ।
  • Numbers in Hindi (हिंदी में नंबर) :  १, २, ३, ४, ५, ६, ७, ८, ९, ०, .

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Our Hindi transliteration also supports fuzzy phonetic mapping. This means you just type in the best guess of pronunciation in Latin letters and our tool will convert it into a closely matching Hindi word.

Hindi transliteration is a process of phonetically converting similar-sounding characters and words from English to Hindi. For Example, you can type in " Aap kaise hain? " in Latin to get " आप कैसे हैं? ".

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Hindi translation is a process of converting word or sentence from one language to Hindi and vice versa. For instance, typing " Hindi is spoken by 366 million people across the world. " in English will be translated into " दुनिया भर में ३६६ मिलियन लोगों द्वारा हिंदी बोली जाती है। ".

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Kurti Dev Font Keyboard Layout with Dark Background Theme

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नमस्ते
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धन्यवाद
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शायद
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क्षमा कीजिय!
Sorry maaf keejiye
माफ़ कीजिये
I love you main tumase pyaar karata hoon
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Essay On Munshi Premchand: छात्र ऐसे लिखें मुंशी प्रेमचंद पर निबंध

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  • Updated on  
  • फरवरी 26, 2024

Essay On Munshi Premchand in Hindi

भारतीय साहित्य के इतिहास में मुंशी प्रेमचंद का नाम सुनहरे शब्दों में जड़ा हुआ है। मुंशी प्रेमचंद को उनके साहित्यिक योगदान के लिए कई सम्मान और पुरस्कार मिले, जिनमें भारतीय साहित्य पर उनके उत्कृष्ट प्रभाव को देखते हुए साहित्य अकादमी पुरस्कार और पद्म भूषण भी शामिल हैं।

मुंशी प्रेमचंद को हिंदी उपन्यास का सम्राट भी कहा जाता है। मुंशी प्रेमचंद का वास्तविक नाम धनपत राय था। वे एक सफल लेखक होने के साथ साथ एक देशभक्त, कुशल वक्ता और बेहतरीन संपादक भी थे। उनके समय में लेखन को एक पेशे के रूप में नहीं माना जाता था और छपाई से संबंधित तकनीकी सुविधाओं की भारी कमी होने के बावजूद भी उन्होंने हिंदी के महान लेखक के रूप में प्रसिद्धि प्राप्त की। मुंशी प्रेमचंद साहित्य प्रेमियों के लिए प्रेरणा के स्त्रोत हैं। यहाँ मुंशी प्रेमचंद के बारे में Essay On Munshi Premchand in Hindi के नमूने दिए जा रहे हैं। इनकी मदद से छात्र मुंशी प्रेमचंद के बारे में निबंध लिखना सीख सकते हैं।

This Blog Includes:

मुंशी प्रेमचंद पर निबंध 100 शब्दों में निबंध, मुंशी प्रेमचंद पर निबंध 200 शब्दों में निबंध, मुंशी प्रेमचंद का जन्म, शिक्षा और विवाह, मुंशी प्रेमचंद का साहित्यिक जीवन, प्रेमचंद की साहित्यिक विशेषताएं, मुंशी प्रेमचंद की रचनाएं और प्राप्त सम्मान, मुंशी प्रेमचंद पर 10 लाइन्स.

Essay On Munshi Premchand in Hindi 100 शब्दों में निबंध नीचे दिया गया है:

मुंशी प्रेमचंद जिनका मूल नाम जन्म धनपत राय श्रीवास्तव था। मुंशी प्रेमचंद प्रसिद्ध भारतीय लेखक थे जिन्होंने हिंदी साहित्य पर एक अमिट छाप छोड़ी है। उनके कार्यों ने औपनिवेशिक और उत्तर-औपनिवेशिक भारत में आम लोगों के सामने आने वाली सामाजिक और आर्थिक चुनौतियों को स्पष्ट रूप से चित्रित किया। प्रेमचंद की कहानियाँ, जैसे “गोदान,” “गबन,” और “शतरंज के खिलाड़ी”, मानवीय भावनाओं, सामाजिक मुद्दों और वंचित लोगों की दुर्दशा पर गहराई से प्रकाश डालती हैं। उन्होंने अपनी सशक्त कहानी के माध्यम से सामाजिक सुधार और न्याय की वकालत की, जिससे उन्हें “उपन्यास सम्राट” की उपाधि मिली। प्रेमचंद के यथार्थवाद और वंचित लोगों के प्रति सहानुभूति ने उनके लेखन को क्लासिक बना दिया है। जिसने पाठकों और लेखकों को समान रूप से प्रभावित किया है। उनकी विरासत पाठकों को मानव जीवन और समाज की जटिलताओं के बारे में लोगों को प्रेरित करती रहती है।

यह भी पढ़ें :  Samay Ka Sadupyog Essay In Hindi

Essay On Munshi Premchand in Hindi 200 शब्दों में निबंध नीचे दिया गया है:

मुंशी प्रेमचंद भारतीय साहित्य में सबसे प्रसिद्ध शख्सियतों में से एक हैं। उनका जन्म 1880 में हुआ था। उनका शुरुआती नाम धनपत राय श्रीवास्तव था। उनकी कहानियाँ आम लोगों के संघर्ष और आकांक्षाओं को दर्शाती हैं, जो स्वतंत्रता-पूर्व युग के दौरान भारतीय समाज के सार को दर्शाती हैं। प्रेमचंद ने अपनी उत्कृष्ट कहानी के माध्यम से गरीबी, अन्याय और जातिगत भेदभाव जैसे मुद्दों पर प्रकाश डालते हुए समाज में व्याप्त सामाजिक और आर्थिक असमानताओं को उजागर किया।

प्रेमचंद की कई रचनाएँ हैं, जिनमें “गोदान,” “निर्मला,” और “सेवासदन” जैसे उपन्यास शामिल हैं। ये कहानियां आम आदमी द्वारा सामने आने वाली कठोर वास्तविकताओं को दर्शाती हैं, जो अक्सर नैतिक अखंडता और मानवीय मूल्यों के महत्व पर जोर देती हैं। उनके पात्र वास्तविक जीवन से लिए गए हैं, जो उन्हें सभी उम्र के पाठकों के लिए गहरा प्रभावशाली बनाते हैं।

अपने साहित्यिक योगदान से परे, प्रेमचंद सामाजिक सुधार और राजनीतिक जागृति के भी समर्थक थे। उन्होंने अपने लेखन का उपयोग सामाजिक परिवर्तन के लिए एक उपकरण के रूप में किया। उनका मुख्य उद्देश्य अपने पाठकों के बीच सहानुभूति और करुणा को प्रेरित करना था।

वित्तीय संघर्षों और पारिवारिक जिम्मेदारियों सहित अपने निजी जीवन में कई चुनौतियों और कठिनाइयों का सामना करने के बावजूद, प्रेमचंद ने अटूट समर्पण और प्रतिबद्धता के साथ लिखना जारी रखा। उनकी साहित्यिक विरासत अद्वितीय बनी हुई है, जिसने कई लेखकों को प्रभावित किया है और भारतीय साहित्य पर एक अमिट छाप छोड़ी है।

यह भी पढ़ें :  राष्ट्रीय मतदाता दिवस पर निबंध 

मुंशी प्रेमचंद पर निबंध 500 शब्दों में निबंध

Essay On Munshi Premchand in Hindi 500 शब्दों में निबंध नीचे दिया गया है:

भारतीय साहित्य में सबसे प्रभावशाली शख्सियतों में से एक माने जाने वाले मुंशी प्रेमचंद गहन कहानी कहने और सामाजिक यथार्थवाद का उदाहरण हैं। उनका जन्म 1880 में हुआ था। उनका शुरुआती नाम धनपत राय श्रीवास्तव था। प्रेमचंद की साहित्यिक यात्रा औपनिवेशिक भारत में महत्वपूर्ण सामाजिक उथल-पुथल के दौर तक फैली हुई है। उनका लेखन आम लोगों के संघर्षों, आकांक्षाओं और जटिलताओं के बारे में बताता है। उनकी रचनाएं स्वतंत्रता-पूर्व युग के दौरान भारतीय समाज के ताने-बाने की मार्मिक अंतर्दृष्टि प्रदान करती हैं।

प्रेमचंद की कहानियाँ मानवीय स्थिति में गहराई से उतरती हैं। उनका कहानियां पारस्परिक संबंधों की जटिलताओं, गरीबी की कठोर वास्तविकताओं और समाज में प्रचलित अन्याय का चित्रण करती हैं। अपने ज्वलंत चरित्र-चित्रण के माध्यम से, उन्होंने विविध पृष्ठभूमि के व्यक्तियों के सामने आने वाली असंख्य चुनौतियों को उजागर किया, जिससे उन्हें “उपन्यास सम्राट” की उपाधि मिली।

मुंशी प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई 1880 हुआ था। वे भारत के उत्तर प्रदेश में वाराणसी के पास एक गाँव लमही में जन्मे थे। वे एक डाक क्लर्क अजायब लाल और आनंदी देवी की चौथी संतान थे।

अपनी शिक्षा की शुरुआत में प्रेमचंद को आर्थिक तंगी के कारण का हुई। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा के लिए एक स्थानीय विद्यालय में दाखिला लिया था। उन्होंने उर्दू और फ़ारसी जैसी भाषाओं में दक्षता हासिल की। 

हालाँकि, परिवार में वित्तीय कठिनाइयों के कारण उन्हें पंद्रह साल की उम्र में अपनी औपचारिक स्कूली शिक्षा बंद करनी पड़ी। इस असफलता के बावजूद, ज्ञान के प्रति उनकी प्यास अतृप्त रही और उन्होंने अंग्रेजी साहित्य सहित विभिन्न विषयों का स्वाध्याय जारी रखा।

प्रेमचंद की पहली शादी 1899 में उन्नीस साल की उम्र में शिवरानी देवी नाम की लड़की से हुई। दुर्भाग्य से, उनकी शादी अल्पकालिक रही क्योंकि कुछ साल बाद ही शिवरानी देवी का निधन हो गया। 1906 में प्रेमचंद ने दोबारा शादी की थी। निचली जाति से होने के कारण भारतीय समाज में प्रचलित सामाजिक विरोधों को देखते हुए, उनका विवाह उस समय के लिए अपरंपरागत था। 

प्रेमचंद का जीवन चुनौतियों और संघर्षों से भरा था, लेकिन साहित्य के प्रति उनके जुनून ने उन्हें भारतीय इतिहास के सबसे प्रसिद्ध लेखकों में से एक बनने के लिए प्रेरित किया। उनके व्यक्तिगत अनुभवों और समाज की टिप्पणियों ने उनके लेखन को गहराई से प्रभावित किया। इसके बाद उन्होंने एसे साहित्यिक कृतियों का निर्माण किया जो दुनिया भर के पाठकों के बीच गूंजती रही।

मुंशी प्रेमचंद की साहित्यिक यात्रा “नवाब राय” उपनाम से प्रकाशित उनकी प्रारंभिक रचनाओं से शुरू हुई। “प्रेमचंद” नाम अपनाने के बाद ही उनकी साहित्यिक प्रतिभा वास्तव में निखरी। उन्होंने उपन्यास, लघु कथाएँ, निबंध और नाटकों की विविध श्रृंखला का निर्माण करते हुए हिंदी और उर्दू में प्रचुर मात्रा में लिखा। प्रेमचंद का लेखन भारतीय समाज में प्रचलित सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक मुद्दों पर केंद्रित था, जिसमें आम आदमी के लिए सहानुभूति पर गहरा जोर था। उनके “गोदान,” “निर्मला,” और “गबन” जैसे उपन्यास मानवीय भावनाओं और सामाजिक गतिशीलता के व्यावहारिक चित्रण के लिए जाने जाते हैं। अपने काम के माध्यम से प्रेमचंद ने सामाजिक सुधार लाने वाले लोगों की दुर्दशा के बारे में जागरूकता बढ़ाने का प्रयास किया। भारतीय साहित्य में उनके योगदान ने उन्हें “उपन्यास सम्राट” की उपाधि दी, जिससे भारतीय इतिहास में सबसे प्रभावशाली लेखकों में से एक के रूप में उनकी विरासत मजबूत हुई।

प्रेमचंद की रचनाओं में सामान्य जन की समस्याओं और जीवन का यथार्थ चित्रण देखने को मिलता है। वे बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। प्रेमचंद की रचनाओं में उस समय की घटनाओं की झलक देखने को मिलाती है। उन्होंने अपनी रचनाओं में मानव समाज के आधारभूत महत्व को उजागर किया था। 

मुंशी प्रेमचंद को भारतीय साहित्य के महानतम लेखकों में से एक माना जाता है। मुंशी प्रेमचंद ने कई रचनाएं की जिन्हे आज भी सराहा जाता है। प्रेमचंद की रचनाओं में अक्सर आम लोगों के संघर्ष, सामाजिक अन्याय और मानवीय रिश्तों की जटिलताओं को उल्लेखनीय गहराई और यथार्थवाद के साथ दर्शाया गया है। उनकी कुछ उल्लेखनीय रचनाओं में शामिल हैं:

  • उपन्यास: “गोदान,” “गबन,” “निर्मला,” “कर्मभूमि,” “सेवासदन,” और “रंगभूमि।”
  • लघुकथाएँ: “ईदगाह,” “शतरंज के खिलाड़ी,” “बड़े घर की बेटी,” “ईदगाह,” “पूस की रात,” और “पंच परमेश्वर।”
  •  निबंध: “एक गाँव के पुजारी की डायरी से लीव्स,” “प्रेमचंद की दुनिया,” और “महान ऋण।”

मुंशी प्रेमचंद का भारतीय साहित्य पर स्थायी प्रभाव और सामाजिक वास्तविकताओं का उनका चित्रण उन्हें साहित्यिक जगत में एक प्रतिष्ठित व्यक्ति बनाता है। अपने साहित्यिक योगदान के लिए मुंशी प्रेमचंद को कई सम्मान और पुरस्कार मिले, जिनमें शामिल हैं:

  • उनके उपन्यास “गोदान” के लिए उत्तर प्रदेश हिंदी साहित्य सम्मेलन पुरस्कार (1936)।
  • साहित्य में उनके असाधारण योगदान के सम्मान में 1965 में मरणोपरांत भारत का तीसरा सबसे बड़ा नागरिक पुरस्कार पद्म भूषण दिया गया।
  • हिंदी साहित्य में उत्कृष्ट योगदान के लिए 1955 में मरणोपरांत साहित्य अकादमी पुरस्कार।
  • उनका सम्मान करने के लिए कई स्कूलों, कॉलेजों और साहित्यिक संस्थानों का नाम उनके नाम पर रखा गया है।

यह भी पढ़ें :  Swami Vivekananda Essay in Hindi

मुंशी प्रेमचंद पर 10 लाइन्स नीचे दी गई है:

  • मुंशी प्रेमचंद भारतीय साहित्य के एक विपुल लेखक थे।
  • उपन्यासों और लघु कथाओं सहित उनकी रचनाओं में औपनिवेशिक और उत्तर-औपनिवेशिक भारत की सामाजिक वास्तविकताओं को दर्शाया गया है।
  • प्रेमचंद की कहानी अक्सर आम लोगों के संघर्षों और सामाजिक न्याय के विषयों पर केंद्रित थी।
  • उन्होंने उपनाम “प्रेमचंद” अपनाया और पात्रों और स्थितियों के यथार्थवादी चित्रण के लिए व्यापक रूप से जाने गए।
  • उनके कुछ प्रसिद्ध उपन्यासों में “गोदान,” “गबन,” और “निर्मला” शामिल हैं।
  • प्रेमचंद की लघु कहानियाँ, जैसे “ईदगाह” और “शतरंज के खिलाड़ी”, उनकी गहराई और अंतर्दृष्टि के लिए जानी जाती हैं।
  • उनकी लेखन शैली में सहानुभूति, यथार्थवाद और मानवीय भावनाओं की गहरी समझ थी।
  • अपने पूरे करियर के दौरान, प्रेमचंद ने सामाजिक सुधार और हाशिए पर मौजूद लोगों के उत्थान की वकालत की।
  • उनके साहित्यिक योगदान के लिए उन्हें पद्म भूषण सहित कई सम्मान और पुरस्कार मिले।
  • मुंशी प्रेमचंद की विरासत पाठकों और लेखकों को प्रेरित करती रही है, जिससे भारतीय साहित्य में एक साहित्यिक दिग्गज के रूप में उनकी जगह पक्की हो गई है।

भारतीय साहित्य में मुंशी प्रेमचंद का योगदान अतुलनीय है। मानव स्वभाव के बारे में उनकी गहरी समझ और सामाजिक सुधार के प्रति उनकी प्रतिबद्धता ने दुनिया भर के पाठकों पर एक अमिट छाप छोड़ी है। अपने कार्यों के माध्यम से, प्रेमचंद सामाजिक अन्याय और मानवीय स्थिति के बारे में बातचीत जारी रखते हैं। “उपन्यास सम्राट” के रूप में उनकी विरासत आज भी जीवित है, जो आने वाली पीढ़ियों को सहानुभूति, चिंतन और अधिक न्यायसंगत समाज के लिए प्रयास करने के लिए प्रेरित करती है। मुंशी प्रेमचंद की साहित्यिक प्रतिभा ज्ञान की किरण बनी हुई है।

मुंशी प्रेमचंद का जन्म धनपत राय श्रीवास्तव के रूप में हुआ था, वे एक प्रसिद्ध भारतीय लेखक थे जिन्हें हिंदी और उर्दू साहित्य में उनके प्रभावशाली योगदान के लिए जाना जाता है।

मुंशी प्रेमचंद की कुछ उल्लेखनीय कृतियों में “गोदान,” “गबन,” और “निर्मला” जैसे उपन्यासों के साथ-साथ “ईदगाह” और “शतरंज के खिलाड़ी” जैसी लघु कथाएँ शामिल हैं।

मुंशी प्रेमचंद द्वारा 1936 में रचित गोदान उनकी सर्वश्रेष्ठ रचना मानी जाती है। इसे उनके बेहतरीन हिंदी उपन्यासों में से एक माना जाता है।

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'चीफ की दावत' कहानी का सारांश:

चीफ की दावत’ कहानी भीष्म साहनी द्वारा लिखी गई एक ऐसी कहानी है, जो मां के त्याग और बेटे की उपेक्षा का ताना-बाना बुनती है। इस कहानी के माध्यम से लेखक ने एक माँ का दर्द उकेरा है, जो अपने बेटे बहू के लिए बोझ के समान है। माँ ने अपने बेटे को पाल पोस कर बड़ा किया लेकिन वही बेटा उसे बुढ़ापे में बोझ समझता है। कहानी का आरंभ तब होता है जब शामनाथ नाम का अफसर अपने प्रमोशन के लालच में अपने अंग्रेज चीफ को घर पर दावत पर बुलाता है और लेकिन वह अफसर के सामने अपनी बूढ़ी अनपढ़ माँ को नहीं दिखाना चाहता कि कहीं उसकी बूढ़ी अनपढ़ माँ पर अफसर चीफ की नजर न पड़ जाए और उसकी बेइज्जती ना हो जाए। इसके लिए शामनाथ अपनी माँ को अपने घर में छुपाने के लिए उपाय सोचने लगता है। उसे डर है कि कहीं उसकी ग्रामीण माँ अफसर के सामने आ गई तो उसकी बेज्जती हो जाएगी और उसकी मजाक बनेगी। वह माँ को बरामदे में कोने पर एक कुर्सी पर बिठा देता है ताकि किसी की नजर उस पर न पड़े। अफसर आता है, और पार्टी चलती रहती है। माँ बेचारी कुर्सी पर बैठे बैठे ही सो जाती है। बाद में अंग्रेज अफसर का माँ से सामना हो ही जाता है और वह माँ से उसके हाल-चाल पहुंचता है। वह शामनाथ की माँ की ग्रामीण बोली से प्रभावित होता है, वह खुश होकर दोबारा आकर माँ से मिलने का वादा करता है। शामनाथ बाद में खुश हो जाता है कि उसकी बेइज्जती नहीं हुई। उसकी मां घबराती है कि कहीं मेरे कारण उसका बेटा उस पर नाराज ना हो, लेकिन श्यामनाथ कहता है कि अफसर तुम्हारी बनाई फुलकारी देखने के लिए दुबारा आने को कह कर गया है। माँ अपने बेटे से हरिद्वार भेजने की जिद करती है, लेकिन बेटा कहता है नहीं तुम यहीं पर रखो रहोगी फुलकारी बनाओगी तो अफसर खुश होगा और मेरी तरक्की होगी। माँ भी अपनी बेटे की तरक्की का नाम सुनकर खुश हो जाती है। इस तरह कहानी का अंत होता है। इस कहानी के माध्यम से लेखक ने एक माँ के भावों को व्यक्त किया है जो अपनी संतान के लिए हर हाल में सुख चाहती है, चाहे उसकी संतान उसे कितना भी दुख क्यों न दे।

चीफ़ की दावत मिस्टर शामनाथ के घर पर थी। शामनाथ और उनकी श्रीमती मेहमानों के आगमन के लिए अपने घर में सभी प्रकार की तैयारियाँ करने लगे। साफ-सफाई, टेबल-कुर्सियाँ, तिपाइयाँ, नेपकिन, फूल आदि बरामदे में पहुँच गये। ड्रिंक की व्यवस्था की गई। कमरे की सजावट की गई।

शामनाथ को इस बात की चिंता सता रही थी कि यदि मेहमान आ जाएँगे, तो माँ का क्या होगा? उन्हें कहाँ छुपाएँ? चीफ के सामने उनकी उपस्थिति पति-पत्नी को अच्छी नहीं लगती थी। क्योंकि उनकी माँ जब सोती है, तो जोर-जोर से खर्राटों की आवाज आती है। इसलिए उन्हें कमरे में बंद कर दिया जाय अथवा पिछवाड़े वाली सहेली के यहाँ भेज दिया जाय।

बहू और बेटे के इस तरह के व्यवहार माँ कुछ उदास थी, परन्तु बेटे से कुछ नहीं कहती है। सब कुछ सहन कर जाती है। पत्नी के कारण वह माँ की उपेक्षा भी कर देता है। आखिर चीफ़ साहब आ ही गए। माँ को अव्यवस्थित रूप में देखकर शामनाथ को क्रोध आया।

चीफ के आते ही माँ हड़बड़ाकर उठ बैठी। सिर पर पल्ला रखते हुए खड़ी हो गई। वह सकुचाती हुई काँप रही थीं। चीफ़ के चेहरे पर मुस्कराहट थी। उसने माँ को नमस्ते कहा। हाथ मिलाने के लिए कहा। माँ घबरा गई। देसी अफसरों की स्त्रियाँ हँस पड़ी। दोनों ने अंग्रेजी में ‘हाउ डू यू डू?’ कहा। चीफ को गाँव के लोग बहुत पसंद थे। उसको कमरे की सजावट अच्छी लगी। यहाँ तक कि फुलकारी देने तक कह दिया। चीफ़ ने माँ से गाना भी सुना। वे बहुत खुश थे। शामनाथ इन सारी बातों से माँ पर रीझ गए। कुछ हद तक अनादर की भावना मिट गई। चीफ़ की खुशामदी से उसे तरक्की होनेवाली थी। चीफ़ के लिए माँ फुलकारी बनाकर देने के लिए तैयार हो गई। मेहमानों के जाने के बाद शामनाथ झूमते हुए आए और माँ को आलिंगन में भर लिया | “ओ मम्मी! तुमने आज रंग ला दिया | ” कहते हुए खुशी जाहिर की | उसने कहा – माँ, साहब तुमसे बहुत खुश हुए। माँ की काया बेटे के आलिंगन में छिप गई।

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चीफ की दावत कहानी की समीक्षा सारांश चरित्र चित्रण प्रश्न उत्तर उद्देश्य.

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चीफ की दावत कहानी की समीक्षा पात्रों का चरित्र चित्रण शामनाथ मां का चरित्र कहानी के प्रश्न उत्तर कहानी का उद्देश्य शीर्षक की सार्थकता भीष्म साहनी

चीफ की दावत कहानी की समीक्षा

चीफ की दावत कहानी की समीक्षा सारांश चरित्र चित्रण प्रश्न उत्तर उद्देश्य

चीफ की दावत कहानी मे प्रमुख पात्रों का चरित्र चित्रण

 शामनाथ का चरित्र चित्रण , चीफ की दावत कहानी में मां का चरित्र, चीफ की दावत कहानी में चीफ का चरित्र, चीफ की दावत कहानी के प्रश्न उत्तर.

भीष्म साहनी

चीफ की दावत कहानी का उद्देश्य

चीफ की दावत कहानी  के माध्यम से लेखक भीष्म साहनी ने समाज की सही तस्वीर निकाली है। लेखक ने इस कहानी द्वारा चीफ जैसे सहृदयों, शामनाथ जैसे धूर्त, स्वार्थी, चापलूस; शामनाथ की मां जैसी असहाय मां का चरित्र प्रकट कर यह बताया कि जो मां अपने पुत्र के लिए सर्वस्व समर्पित कर देती है उसी का बेटा उसके सर्वस्व समर्पण रूप का लाभ उठा अपने स्वार्थ पूर्ती मे लगा रहता है। ऐसा कृतघ्नी बेटा मां के कर्त्तव्य को लाभ उठा केवल अपने बारे में सोचता है, उसे मां के भावनाओं, इच्छाओं से कोई लेना देना नहीं। 

चीफ की दावत कहानी शीर्षक की सार्थकता 

चीफ कहानी भीष्म कहानी के शब्दार्थ.

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चीफ की दावत में मां की मनोवेदना या चरित्र

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